________________ 'किंतु जब आप हम सभी को पूर्ण स्वार्थी होने के लिए प्रोत्साहन करते हैं तब यह किस भांति संभव हां, यह केवल तभी संभव है यदि तुम पूर्ण स्वार्थी हो। यदि तुम पूर्ण स्वार्थी हो तो ही तुम यह देख पाओगे कि यदि तुम वास्तव में प्रसन्न होना चाहते हो तो तुमको दूसरों को प्रसन्न करना पडेगा, क्योंकि जीवन एक परस्पर निर्भरता है। जब मैं कहता हू स्वार्थी बनो, तो मैं कह रहा हूं जरा अपनी प्रसन्नता के बारे में सोचो। किंतु उस प्रसन्नता में बहुत कुछ सम्मिलित है। यदि तुम स्वस्थ होना चाहते हो, तो तुमको स्वस्थ लोगों के साथ रहना पड़ता है। यदि तुम स्वच्छतापूर्वक रहना चाहते हो, तो तुमको साफ-सुथरे पड़ोस में रहना पड़ता है। तुम एक द्वीप की भांति नहीं रह सकते। यदि तुम प्रसन्न होना चाहते हो, तो तुमको अपनी प्रसन्नता चारों और बांटनी पड़ेगी। ऐसा संभव ही नहीं है कि चारों और पीड़ा का सागर हो और तुम एक द्वीप की भांति प्रसन्न रहो, असंभव। तुम केवल एक प्रसन्न संसार में ही प्रसन्न रह सकते हो, तुम केवल प्रसन्नतापूर्ण संबंधों में प्रसन्न रह सकते हो; तुम सुंदर लोगों के मध्य में रह कर ही सुंदर हो सकते हो। इसलिए यदि तुम वास्तव में सुंदर होने में रुचि रखते हो तो अपने चारों ओर सौंदर्य निर्मित करो। वह व्यक्ति जो वास्तव में स्वार्थी है, परोपकारी बन जाता है। वास्तविक रूप से स्वार्थी होना स्व के पार जाना है। वास्तविक स्वार्थी होना बुद्ध, जीसस बन जाना है। ये लोग नितांत स्वार्थी लोग हैं, क्योंकि वे केवल आनंद के बारे में सोचते हैं। किंतु अपने आनंद के बारे में सोचते हुए उनको दूसरों के आनंद के बारे में भी सोचना पड़ता है। मैं नितांत स्वार्थी हं। मैंने कभी अपने स्वयं के स्व के अतिरिक्त किसी के बारे में कुछ नहीं सोचा। लेकिन इसी सोच में पिछले दरवाजे से प्रत्येक बात आ जाती है। मेरी रुचि तुम्हारी प्रसन्नता में, तुम्हारे आनंद में है। मैं आनंदित लोगों का एक समुदाय निर्मित करने में उत्सुक हूं। मैं सुंदर लोगों का एक उपवन निर्मित करने को उत्सुक हूं क्योंकि यदि तुम प्रसन्न और आनंदित और सुंदर हो तो मैं आत्यंतिक रूप से आनंदित और प्रसन्न हो जाऊंगा। आनंद बांटने से बढ़ता है। यदि तुम अपना आनंद न बांटो तो यह मर जाएगा, यदि तुम अपनी समाधि को नहीं बांटते तो शीघ्र ही तुम पाओगे कि तुम्हारे हाथ रिक्त हैं। इसलिए जब मैं कहता है पूरी तरह स्वार्थी हो जाओ, तो मेरा अभिप्राय है, यदि तुम समझने का प्रयास करते हो कि तुम्हारा स्व क्या है, तुम्हारा स्वार्थ क्या है, तो तुम देखोगे कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति सम्मिलित है, संलग्न है। और तुम्हारी संलग्नता महत् से महत्तर, विशाल से विशालतर हो जाती है। एक क्षण आता है जब तुम इसको एक तथ्य की भांति देख सकते हो कि समग्र इसमें संलग्न है। बुद्ध के बारे में एक सुंदर कहानी है।