________________ संदेश क्या था। यद्यपि आप हमें सदैव और हमेशा सिखाते रहे हैं, आपने अनेक बातें सिखाई हैं और हम अज्ञानी लोग हैं, हम लोगों के लिए आपके संदेश को संक्षिप्त कर पाना कठिन होगा, इसलिए कृपया, इसके पूर्व कि आप विदा हों, अपनी देशना का परम सार बस एक वाक्य में कह दें। बोकोजू ने अपनी आंखें खोली और जोर से कहा : 'यही है यह!' अपनी आंखें बंद की और मर गया। अब उसके बाद शताब्दियों से लोग यही पूछते रहे हैं की उसका अभिप्राय क्या था, यही है यह? उसने सभी कुछ कह दिया था। यही.. .है......यह... उसने सारा संदेश दे दिया था, यही क्षण ही सब कुछ है। यही क्षण सारा अतीत, सारा वर्तमान, सारा भविष्य, इसी क्षण में समाहित है। किंतु तुम इसको इसकी संपूर्णता में नहीं देख सकते, क्योंकि तुम्हारा मन, विचारों, स्वप्नों, निद्रा से, इतना धूमिल, इतना मेघाच्छादित है, इतने अधिक सम्मोहन, इच्छाएं उद्देश्य हैं कि तुम नहीं देख पाते। तुम संपूर्ण नहीं हो, तुम्हारी दृष्टि संपूर्ण नहीं है। एक बार दृष्टि संपूर्ण हो जाए, पतंजलि कहते हैं, 'तो अतीत और भविष्य का अस्तित्व वर्तमान में है, किंतु वर्तमान में उनकी अनुभूति नहीं हो पाती है, क्योंकि वे विभिन्न तलों पर होते हैं।' अतीत एक भिन्न तल पर चला गया है। यह तुम्हारा अवचेतन बन गया है और तुम अपने अवचेतन में नहीं जा सकते, इसलिए तुम अपने अतीत को नहीं जान सकते। भविष्य का अस्तित्व एक अलग तल पर है, इसका अस्तित्व तुम्हारे पराचेतन में है। किंतु क्योंकि तुम अपने पराचेतन में नहीं जा सकते हो इसलिए तुम अपना भविष्य नहीं जान सकते। तुम अपनी छोटी सी, बहुत आशिक चेतना में बंद हो। तुम एक हिमशैल के अग्रभाग की भांति हो, गहराई में बहुत कुछ छिपा है, तुम्हारे ठीक नीचे, और तुम्हारे ठीक ऊपर बहुत कुछ छिपा है। ठीक नीचे और ऊपर और सारी वास्तविकता तुम्हारे चारों ओर है, लेकिन तुम एक बहुत छोटी सी चेतना से आसक्त हो। इस चेतना को विराटतर और विशालतर बनाओ। ध्यान यही सब कुछ तो है-तुम्हारी चेतना को किस भांति विराटतर बनाया जाए, तुम्हारी चेतना को किस प्रकार असीम बनाया जाए। तुम उतनी ही वास्तविकता को जान पाने में समर्थ हो पाओगे, उसी अनुपात में तुम वास्तविकता को जान लोगे जैसी चेतना तुम्हारे पास है। यदि तुम्हारे पास अनंत चेतना है, तो तुम असीम को जान लोगे। यदि तुम्हारे पास क्षणिक चेतना है, तो तुम क्षण को जानोगे। प्रत्येक बात तुम्हारी चेतना पर निर्भर है। 'वे व्यक्त हों या अव्यक्त, अतीत, वर्तमान और भविष्य सत, रज और तम गुणों की प्रकृति हैं।' पहले भी हम तीन गुणों-सत्व अर्थात स्थायित्व, रजस अर्थात सक्रियता, और तमस अर्थात जड़त्व की चर्चा कर चुके हैं। अब पतंजलि अतीत, वर्तमान और भविष्य को इन तीन गुणों से जोड़ रहे हैं। पतंजलि के लिए जीवन और अस्तित्व की हरेक बात किसी भी प्रकार से इन तीन गुणों से, इन तीन गुणधर्मों से संयुक्त है। पतंजलि की त्रिमूर्ति यही है, प्रत्येक चीज में तीन चीजें निहित हैं। स्थायित्व;