________________ अब इन मुसलमान सज्जन में एक विशेष सजगता है, एक ऐसी विशिष्ट सजगता जिसको किसी चीज के द्वारा धुंधला नहीं किया जा सकता, एक खास किस्म की जागृति जिसको आसानी से विचलित नहीं किया जा सकता। सामान्यत: प्रत्येक वस्तु तुम्हारे मन को रंग देती है और तुम प्रत्येक वस्तु को रंग देते हो। जब यह रंगा जाना रुक जाता है, यह उभयपक्षीय रंगना रुक जाता है, तभी वस्तुएं अपने सच्चे अस्तित्व में प्रकट होना आरंभ कर देती हैं। तब तुम वास्तविकता को उसी प्रकार से देख लेते हो जैसी कि वह है। तब तुम जान जाते हो. यही है यह। तब तुम उसको जान लेते हो जो है। ये सूत्र मात्र संकेत देते हैं कि जब तक अ-मन की अवस्था उपलब्ध नहीं कर ली जाती अज्ञान को विनष्ट नहीं जा सकता है। जागरूकता अज्ञान के विरोध में है, जानकारी अज्ञान के विरोध में नहीं है। इसलिए तोते मत बन जाओ, मात्र याददाश्त पर ही भरोसा मत रखो। सूचनाओं से मन को मत भरो, देखने का प्रयास करो। वस्तुओं को जैसी वे हैं वैसी ही देखने का प्रयास करो। वेदों, उपनिषदों, कुरान, बाइबिल से सहायता नहीं मिल सकती। तुम महान ज्ञानवान, विद्वान बन सकते हो, किंतु कहीं गहरे में तुम बस मूर्ख ही बने रहोगे। और जब अज्ञान की सजावट जानकारी से हो जाती है तो व्यक्ति इससे आसक्त हो जाता है। व्यक्ति इसको नष्ट करना नहीं चाहता। वास्तव में अहंकार को अत्यधिक प्रसन्नता अनुभव होती है। तुम्हें चुनाव करना पड़ेगा। यदि तुम अहंकार को चुनते हो, तो तुम अज्ञानी बने रहोगे। यदि तुम सजगता चाहते हो, तो तुम्हें अहंकार की उन चालबाजियों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा जो वह तुम्हारे साथ खेलता है। सुबह, मनन करो कि तुम क्या जानते हो और तुम क्या नहीं जानते, और सरलता से संतुष्ट मत हो जाओ। तुम क्या जानते हो और क्या नहीं जानते, इसमें जितना हो सके उतनी गहराई तक उतर जाओ। यदि तुम यह निर्णय कर सको कि यह तुम जानते हो और यह नहीं जानते हो, तो तुमने एक बड़ा कदम उठा लिया है। और यह कदम, यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम है जो एक व्यक्ति कभी भी उठा सकता है, क्योंकि तभी तीर्थयात्रा, सत्यता की ओर की तीर्थयात्रा का आरंभ होता है। यदि तुम यह विश्वास करते चले जाओ कि तुम अनेक बातों को जानते हो और तुम उन्हें नहीं जानते, तब तुम स्वयं को धोखा दे रहे हो, तुम अपनी जानकारी से सणोहित रहोगे। तुम अपना सारा जीवन नशे में बरबाद कर दोगे। सामान्यत: लोग बस ऐसे जीते हैं जैसे कि वे गहरी निद्रा में हों, अपनी निद्रा में चल रहे हों, अपनी निद्रा में सारे कार्य कर रहे हों, सोमनैमबलिस्ट, निद्राचारी हों। गुरजिएफ आस्पेंस्की और अपने तीस शिष्यों को एक बहुत दूरस्थ स्थान पर ले गया। और उसने अपने तीसों शिष्यों से तीन माह तक पूर्णत: मौन रहने को कहा, उसने उनसे इतना मौन हो जाने को कहा कि वे नेत्रों या मुख-मुद्राओं द्वारा भी संवाद न करें। और तीस लोगों को एक छोटे से बंगले में इस भांति रहना था जैसे कि वहां तीस लोग नहीं थे, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही रह रहा था। कुछ दिनों बाद कुछ लोग छोड़ कर भाग गए, क्योंकि यह नियम बहुत अधिक कठोर था, असंभव था