________________ यह तो कुछ भी नहीं है डाक्टर साहब, उस आदमी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, जब तक मैं उस नरभक्षी के बारे में आपको पूरी बात न बता दूं जरा रुकिए फिर अपनी राय दीजिएगा। तुम्हारा मन लगातार कुछ न कुछ आरोपित करता चला जाता है। वास्तविकता एक पर्दे की भांति कार्य करती है और तुम चलचित्र प्रक्षेपक की भांति कार्य करते रहते हो। वह व्यक्ति जो सीख रहा है कि सजग किस प्रकार | जाए, सीख लेगा कि अपने प्रक्षेपणों को किस भांति गिरा दिया जाए और तथ्यों को उसी प्रकार से देखा जाए जैसे कि वे हैं। अपने मन को बीच में मत लाओ, अन्यथा तुम कभी भी सच्चाई को जान पाने में समर्थ नहीं हो पाओगे। तुम अपनी व्याख्याओं के घेरे में बंद रहोगे। 'भिन्न-भिन्न मनों के द्वारा एक ही वस्तु विभिन्न ढंगों से देखी जाती है।' 'वस्तु एक मन पर ही निर्भर-नहीं है।' लेकिन फिर भी पतंजलि वे ही बातें नहीं कह रहे हैं जो बिशप बर्कले ने कही हैं। बर्कले का कहना है कि वस्तुओं का ज्ञान पूरी तरह से मन पर निर्भर है। उसका कहना है कि जब आप कमरे से बा चले जाते हैं तो कमरे के भीतर की प्रत्येक वस्तु तिरोहित हो जाती है। यदि उनको देखने वाला कोई न हो तो वस्तुओं का अस्तित्व कैसे संभव है? और एक प्रकार से उसकी बात काट पाना कठिन है, क्योंकि वह कहता है, जब आप कमरे में पुन: वापस लौटते हैं तो वस्तुएं प्रकट हो जाती हैं, जब आप बाहर निकल जाते हैं वे लुप्त हो जाती हैं; क्योंकि उनको अर्थ प्रदान करने के लिए एक मन की आवश्यकता होती है। बर्कले कह रहा है कि वस्तुएं और कुछ नहीं वरन व्याख्याएं हैं। इसलिए जब तुम बाहर जाते हो तो निःसंदेह तुम्हारी व्याख्याएं तुम्हारे साथ चली जाती हैं और कमरे में कुछ भी शेष नहीं रहता। यह सिद्ध करना बहुत कठिन है कि वह गलत है, क्योंकि यदि तुम सिद्ध करने के लिए कमरे में लौट कर आते हो तो तुम वापस लौट आए हो, इसलिए वस्तुएं प्रकट हो गई हैं। लेकिन लोगों ने प्रयास किए हैं। एक व्यक्ति ने कुछ ऐसी वस्तुएं खोजने का प्रयास किया है जिनको मानने के लिए बिशप बर्कले को भी बाध्य होना पड़ेगा। तुम एक रेलगाड़ी में बैठे हए हो और रेलगाड़ी चल रही है और तुम इसके पहियों को नहीं देख रहे हो, लेकिन फिर भी वे हैं, क्योंकि रेलगाड़ी चल रही है। पहियों को कोई भी नहीं देख रहा है, किंतु तुम उनके होने से इनकार नहीं कर सकते, वरना तम एक स्टेशन से दसरे तक नहीं पहंचोगे। और सारे यात्री रेलगाड़ी के भीतर हैं लेकिन पहियों को कोई भी नहीं देख रहा है, किंतु पहिए हैं। निःसंदेह वह भी वस्तुओं के बारे चिंतित था क्योंकि यदि सभी वस्तुएं खो जाएं तब वे पुन: वापस किस प्रकार से आएंगी? अंततः उसने यह तय किया कि उनका अस्तित्व ईश्वर के मन में है, इसलिए भले ही तुम वहा नहीं हो फिर भी ईश्वर तुम्हारे फर्नीचर को देख रहा है। यही कारण है कि वह बना रहता है; अन्यथा तो यह खो जाएगा।