________________ वे मोक्ष के द्वार पर पहुंच गए। द्वार खोल दिया गया, किंतु उन्होंने भीतर प्रवेश नहीं किया। द्वारपाल ने कहा : सारी तैयारियां हो गई हैं, और हम लाखों वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे थे। अब आप आ गए हैं। यह बहुत दुर्लभ घटना है कि कोई व्यक्ति बुद्ध हो जाता है। पधारिए। आप वहां क्यों खड़े हैं? और आप इतने उदास क्यों दिखाई पड़ रहे हैं? बदध ने कहा : मैं कैसे भीतर आ सकता है? क्योंकि लाखों लोग अभी भी रास्ते पर संघर्षरत हैं। लाखों लोग हैं जो अभी भी पीड़ा में हैं। मैं केवल तब प्रवेश करूंगा जब अन्य सभी लोग प्रविष्ट हो चुके होंगे। मैं यहीं खड़ा रहंगा और प्रतीक्षा करूंगा। अब इस कहानी में अनेक अर्थ हैं। एक अर्थ यह है कि जब तक कि समग्र ब्रह्मांड ज्ञान को उपल्यब्ध नहीं हो जाता कोई कैसे ज्ञानोपलब्ध हो सकता है? क्योंकि हम एक-दूसरे के हिस्से हैं, एक-दूसरे के साथ संयुक्त हैं, एक-दूसरे के भाग हैं। तुम मुझमें हो, मैं तुममें हं, इसलिए मैं अपने आप को अलग कैसे कर सकता हूं? यह असंभव है। यह कहानी आत्यंतिक रूप से अर्थपूर्ण और सच्ची है। समग्र को ज्ञानोपलब्ध होना पड़ेगा। निःसंदेह, व्यक्ति एक विशेष समझ पा सकता है, लेकिन इस समझ से उदघाटित होगा कि दूसरे भी सम्मिलित हैं, और चेतना एक ही है। स्वार्थी होना समग्र में पूरी तरह से विलीन हो जाना है, क्योंकि केवल मूर्ख लोग ही स्वयं को बचाने की चेष्टा करते रहते हैं। और स्वयं को बचाने की चेष्टा में वे स्वयं को विनष्ट करते हैं। जीसस कहते है : स्वयं को बचाओ और तुम खो जाओगे। स्वयं को खो द्रो। स्वयं को बचाओ और तुम खो जाओगे! वे तुमको स्वार्थी होने की सर्वश्रेष्ठ विधियों में से एक प्रदान कर रहे हैं. स्वयं को खो दो और तुमको मिलता है। स्वयं को खोकर तुम्हें मिलता है। चारों ओर प्रसन्नता को फैला कर तुम प्रसन्न हो जाते हो; चारों ओर शांति फैला कर तुम शांतिपूर्ण हो जाते हो। जब आप हम सभी को पूर्ण स्वार्थी होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तब यह किस भांति संभव है।' यह केवल तब ही संभव है जब तुम पूर्ण स्वार्थी हो। तब तुम सदा मतलब की बात देख लोगे। यदि तुम एक परिवार में रहते हो, यदि तुम पत्नी या पति हो, तो तुम यह देख पाओगे कि यह तुम्हारे पक्ष में है कि पति या पत्नी प्रसन्न हो। बस यह स्वार्थ ही है कि पति प्रसन्न, गीत गाता हआ औ आह्लादित रहे, क्योंकि यदि वह उदास, अवसादग्रस्त, क्रोधित हो जाता है, तब तुम भी लंबे समय तक प्रसन्न नहीं रह सकोगी। वह तुमको प्रभावित करेगा। सभी कुछ संक्रामक होता है। यदि तुम प्रसन्न होना चाहते हो, तो तुम यही पसंद करोगे कि तुम्हारे बच्चे भी प्रसन्न और नृत्य मग्न रहें, क्योंकि यही एकमात्र उपाय है जिससे तुम्हारी ऊर्जा नृत्यमग्न होगी। यदि वे सभी उदास हैं, बीमार हैं, और अपने कोने में आभाहीन हुए बैठे हैं, तो तुम्हारी ऊर्जा तुरंत निम्नतर हो जाएगी। जरा निरीक्षण करो। जब तुम ऐसे लोगों के साथ उठते-बैठते हो जो प्रसन्न हैं तो अचानक तुम्हारी उदासी खो जाती है, विलीन