________________ उसने इसे स्वीकार कर लिया है। किंतु स्वतंत्रता एक ऐसी चीज है कि चाहे कुछ भी होता हो तुम स्वातंभ्य उन्मुख रहती हो। स्वतंत्र होने की इच्छा तुम कभी नहीं खोती, क्योंकि यह धार्मिक होने की इच्छा है, यह दिव्य होने की इच्छा है। चाहे कुछ भी हो जाए स्वतंत्रता लक्ष्य बनी रहती है। इसलिए जब विद्रोह करने का कोई उपाय न हो, और सारा समाज पुरुष के नियंत्रण का है, तब क्या किया जाए? इससे संघर्ष कैसे करें? अपने थोड़े से सम्मान की रक्षा कैसे की जाए? इसलिए स्त्री चालाक और कूटनीतिज्ञ हो गई है। वह ऐसे काम करना आरंभ कर देती है जो प्रत्यक्ष रूप से नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष आक्रमण है। वह पुरुष से सूक्ष्म ढंगों से संघर्ष करती है। इसने उसे करीब-करीब एक घड़ियाल जैसा बना दिया है। वह बदला लेने के लिए अपने अवसर की सतत प्रतीक्षा करती रहती है। वह किसी विशिष्ट बात के लिए जिसके विरोध में वह संघर्षरत है, सजग नहीं भी हो सकती है, लेकिन वह बस एक स्त्री है और वह पूरी स्त्री-जाति का प्रतिनिधित्व करती है। गौरवहीनता और अपमान की शताब्दियों पर शताब्दियां वहां उसके अवचेतन में हैं। संभवत: तुम्हारे पुरुष–साथी ने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत न किया हो, लेकिन वह सभी पुरुषों का प्रतिनिधित्व करता है। इसको तुम भूल नहीं सकतीं। तुम पुरुष से, इसी पुरुष से प्रेम करती हो, लेकिन तुम उस संगठन को प्रेम नहीं कर सकती जिसे परुषों ने बनाया है। तम इस पुरुष से प्रेम कर सकती हो, किंतु पुरुष को जैसा वह है तुम क्षमा नहीं कर सकती हो। और जब कभी तुम इस पुरुष को देखती हो, तुम्हें वहां पुरुष-मन मिलता है, और तुम प्रतिशोध लेना शुरू कर. देती हो। यह बहुत अवचेतन है। इससे स्त्रियों में एक विशेष प्रकार की विक्षिप्तता उत्पन्न हो जाती है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अधिक संख्या में विक्षिप्त हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि वे एक पुरुष निर्मित समाज में जो पुरुषों के लिए तैयार किया गया है रहती हैं, और उनको इसके अनुरूप होना पड़ता है। यह पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए निर्मित किया गया है, और उन्हें इसमें रहना पड़ता है, उनको इसके अनुरूप होना पड़ता है। उनको अपने बहुत से भाग काटने पड़ते हैं, अपने हाथ-पैर, जीवित हाथ-पैरबस पुरुषों द्वारा उनको दी गई यांत्रिक भूमिका के अनुरूप होने के लिए उन्हें पंगु होग पड़ता है। वे संघर्ष करती हैं, वे प्रतिरोध करती हैं, और इस सतत संघर्ष से एक विशेष प्रकार की विक्षिप्तता का जन्म होता है। इसी को बिचिंग, कुतियापन कहा जाता है। मैंने सुना है, एक भद्र वृद्ध महिला पालतू जानवरों की दुकान में गई। दुकान के प्रवेश द्वार के पास ही एक बहुत सुंदर कुत्ता था, और उसने दुकान के मालिक से कहा, आपने वह अच्छा सा, प्यारा सा कुत्ता वहां बिठा रखा है? दुकानदार बोला, जी हाँ, महोदया, वह एक बहुत सुंदर कुतिया (बिच) है। है न संदर? वह महिला क्रोधित हो उठी, उसने कहा क्या! अपने शब्दों पर गौर करें, ऐसे शब्दों का उपयोग मत करें! नगर का संभ्रांत क्षेत्र है यह थोड़ा और सुसंस्कृत बनिए!