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एक भला दिखने वाला आदमी अपने एक पुराने मित्र से गपशप में इतना व्यस्त हो गया कि उसे समय का होश नहीं रहा। अचानक उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली और बोला. अरे मित्र, तीन बज रहे हैं और मैंने अपने मनोचिकित्सक से तीन बजे का समय लिया हुआ है, और वहां तक पहुंचने में कम से कम पंद्रह मिनट तो लगेंगे ही।
उसके मित्र ने कहा अब परेशान होने की जरूरत नहीं है, तुम कुछ ही मिनट देर से पहुंचोगे ।
तुम उसे जानते नहीं, यदि मैं ठीक समय से वहां नहीं पहुंचा तो वह मेरे बिना ही शुरू हो जाएगा। स्वप्न को यथार्थ मान लेने का खतरा है। अपनी कल्पनाओं में बहुत अधिक विश्वास कर लेने का खतरा है। तुम अपनी आंतरिक कल्पना, अपने स्वप्न - संसार से इतना अधिक ग्रस्त हो सकते हो कि तुम एक वहम में जी सकते हो, लेकिन इन खतरों के साथ भी इसे समझना और इससे होकर गुजरना आवश्यक है। लेकिन याद रखो, यह एक सेतु है, जिससे होकर गुजर जाना है। जब तुमने इसको पार कर लिया, तो तुम वास्तविक समय के सम्मुख आ जाओगे।
क्रमागत समय शरीर से संबद्ध है, मनोवैज्ञानिक समय मन से जुड़ा है, वास्तविक समय तुम्हारे
अस्तित्व से क्रमागत समय बहिर्मुखी मन है, मनोवैज्ञानिक समय अंतर्मुखी मन है, और वास्तविक समय मनातीत है।
किंतु व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक समय से गुजरना पड़ता है। उस क्षेत्र के पार पूर्ण होश से जाना पड़ता है। तुम्हें वहां अपना ठिकाना नहीं बनाना चाहिए। यदि तुम वहां अपना आवास बना लो तो तुम विक्षिप्त हो जाते हो। यही उन बहुत सारे लोगों के साथ हो गया है जो पागलखानों में हैं। वे क्रमागत समय को भूल चुके हैं, वे वास्तविक समय में नहीं पहुंचे, और उन्होंने पुल पर मनोवैज्ञानिक समय में रहना आरंभ कर दिया है। इसी कारण उनकी सच्चाई व्यक्तिगत और निजी बन गई है। एक पागल व्यक्ति अपने निजी संसार में रहता है, और वह व्यक्ति जिसको तुम सामान्य कहते, सार्वजनिक संसार में रहता है। सार्वजनिक संसार लोगों के साथ है, निजी संसार तुम में सीमित है, लेकिन वास्तविक संसार न तो निजी है और न ही सार्वजनिक, यह सार्वभौम है, यह दोनों के पार है। और व्यक्ति को दोनों के परे जाना पड़ता है।
एक आदमी सड़क के आवारागर्द के रूप मे जाना जाता था। वह एक दुर्घटना के बाद अस्पताल में पड़ा हुआ था। पड़ा
डाक्टर ने नर्स से पूछा. सुबह इसका क्या हाल रहा?
वह बोली ओह! वह अपना दायां हाथ बाहर किए रहता है।
आह! डाक्टर ने कहा. वह मोड़ पर मुड़ रहा है।