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पहले दो ने अपने जीवन की घटनाओं को दूर अतीत की स्मृतियों में जाकर शर्माते हुए बयान किया और जब तीसरे सज्जन की बारी आई तो उसने बताया कि वह किस प्रकार नौकरानी के शयनकक्ष में की-होल से झांकता हआ रंगे हाथ पकड़ा गया। अरे हां, उनमें से एक ने मस्करा कर कहा. निश्चित रूप से अपने बचपन के दिनों हम कितने शरारती थे।
बचपन के दिन! नहीं भाई, तीसरे बुजुर्ग ने कहा, यह तो कल रात की बात है।
किंतु कुरूप है यह। वृद्ध व्यक्ति को पुन: छोटे बच्चे के जैसा हो जाना चाहिए। क्योंकि जब कामवासना खोती है, सारी इच्छाएं तिरोहित हो जाती हैं। जब काम मिट जाता है, दूसरों में रुचि समाप्त हो जाती है। समाज से, संसार से, पदार्थ से संपर्क ही कामवासना है। जब कामवासना मिट जाती है, अचानक तुम श्वेत मेघ की भांति पवन विहार करने लगते हो। तुम जड़ों से छूट चुके हो, अब तुम्हारी जड़ें इस संसार में नहीं रहीं।
और जब तुम्हारी ऊर्जा नीचे की ओर निम्नाभिमुख, अधोमुखी नहीं है, तभी यह ऊर्ध्वगामी होने लगती है और सहस्रार
ती है, जहां कि परम कमल ऊर्जा की प्रतीक्षा कर रहा है कि वह आए और खिलने में इसकी सहायता करे।
हा
आज इतना ही।
प्रवचन 89 - कैवल्य: परम एकांत
योग-सूत्र:
(विभूतिपाद)
सत्त्वपुरुषके शुद्धिसाम्पे कैबल्यम्।। 56।।
जब पुरुष और सत्व के मध्य शुद्धता में साम्य होता है, तभी कैवल्य उपलब्ध हो जाता है।