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की भी मृत्यु है। फिर अब कोई और जन्म नहीं होता, क्योंकि वापस लौटने के लिए कोई बीज न बचा, पूरी होने के लिए कोई इच्छा न रही, कुछ शेष नहीं रहा, व्यक्ति बस एक सुगंध की भांति खो जाता है
'और इस प्रक्रिया का कोई प्रारंभ नहीं है, जैसे कि जीने की इच्छा शाश्वत होती है।'
दर्शनशास्त्री पूछे चले जाते हैं, संसार कब आरंभ हुआ? योग एक अत्यधिक अनूठी बात कहता है. संसार का आरंभ कभी नहीं हुआ था। इच्छा का कोई आरंभ नहीं है, क्योंकि जीने की इच्छा शाश्वत है। यह सदैव से वहां थी। योग संसार के किसी सृजन में विश्वास नहीं रखता है। ऐसा नहीं है कि किसी दिन, किसी क्षण में ईश्वर ने ससार का सृजन किया। नहीं, इच्छा सदा से वहां थी। इच्छा के लिए कोई आरंभ नहीं है, लेकिन इसका अंत है, इसको समझ लिया जाना चाहिए। यह बात बहुत बेतुकी है, किंतु यदि तुमने इसको समझ लिया तो तुम ठीक अर्थ को अनुभव करने में समर्थ हो जाओगे।
इच्छा का कोई आरंभ नहीं है, किंतु इसका अंत होता है। इच्छा-शून्यता का आरंभ है, लेकिन इसका कोई अंत नहीं है, और व रा हो जाता है। इच्छा का कोई आरंभ नहीं है लेकिन अंत है। यदि तम सजग हो जाओ तो अंत आता है और तब इच्छा-शून्यता आरंभ होती है। इच्छा-शून्यता का आरंभ है किंतु फिर इसका कोई अंत नहीं है। संसार का कोई आरंभ नहीं है, हम पूर्व में कहते रहे हैं, यह सदा से और सदैव चल रहा है; लेकिन इसका अंत है। बुद्ध के लिए, यह मिट जाता है। फिर यह वहां नहीं बचता। ठीक एक स्वप्न की भांति यह तिरोहित हो जाता है। लेकिन संसार के जो परे हैं-निर्वाण, कैवल्य, मोक्ष-इसका एक आरंभ है लेकिन कोई अंत नहीं है। इसलिए हम यह कभी नहीं पूछते कि संसार कब आरंभ हुआ। हमने इसकी चिंता ही नहीं ली है क्योंकि इसका कभी आरंभ नहीं हुआ था।
हमने कृष्ण, बुद्ध, महावीर की जन्मतिथियो पर कभी अधिक ध्यान नहीं दिया, किंतु हमने उस दिन पर बहुत ध्यान दिया जब उन्हें समाधि घटित हुई-क्योंकि यह किसी ऐसी बात का वास्तविक आरंभ है जिसका कभी अंत नहीं होगा। बुद्ध का संबोधि-दिवस बहुत महत्वपूर्ण है, उसको हमने स्मरण रखा है, और उसकी हमने बार-बार अनेक बार पूजा की है। कोई नहीं जानता कि उनका जन्म कब हुआ था, किसी ने इसकी चिंता ही नहीं ली। वास्तव में पौराणिक कथा यह है कि उनका जन्म उसी दिन हुआ था जिस दिन उनकी मृत्यु हुई थी, और उसी दिन उन्हें बोध भी प्राप्त हुआ था:। मेरी अनुभूति यह है कि हमने उनके जन्म का दिन और उनकी मृत्यु का दिन भुला दिया है; हम केवल उनके संबोधि-दिवस को याद रखते हैं। लेकिन केवल वही महत्वपूर्ण है कि उनका जन्म-दिवस उनका मृत्य-दिवस भी है क्योंकि यही जीवन की एकमात्र महत्वपूर्ण घटना है जो घटित होती है-अंतहीन का आरंभ।
इच्छा का कोई आरंभ नहीं है, यह सदा से यहां है, किंतु इसका अंत हो सकता है। इच्छा-शून्यता का आरंभ हो सकता है और अंत कभी नहीं होगा। और इच्छा तथा इच्छा-शून्यता के मध्य वर्तुल पूरा हो जाता है। यह वही ऊर्जा है जो इच्छा बन गई थी, इच्छा-शून्यता बन जाती है। यह वही ऊर्जा है।