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कृत्रिम मन अहंकार के माध्यम से जीवित रहता है, इसलिए यदि तुम अहंकार छोड़ना आरंभ कर दो तो कृत्रिम मन छिन्न-भिन्न होने लगेगा। या यदि तुम अपने कृत्रिम मन का परित्याग कर दो, तो अहंकार विखंडित होने लगेगा। और यदि तुम वास्तव में इस चट्टान से छुटकारा पाना चाहते हो, तो दोनों उपायों को एक साथ आरंभ कर दो।
स्मरण रखो कि भौतिक मन अहं-शून्य होता है। यह मैं को नहीं जानता क्योंकि मैं एक संकुचन है। मौलिक मन आकाश की भांति असीम है।
और जहां तक अहंकार का संबंध है, एक समस्या लगातार उठती रहती है। आरंभ में तुम स्वयं के बारे में दूसरों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हो लेकिन धीरे-धीरे तुम स्वयं ही मूर्ख बन जाते हो। जब तुम दूसरों को विश्वास दिलाना आरंभ करते हो कि तुम कोई विशिष्ट व्यक्ति हो, तो तुम स्वयं ही अपने बारे में विश्वास करने लगते हो।
पागलखाने में एक कठोर नियम था : पालतू जानवर नहीं। वार्डर ने बेचारे हैरी को तेवर नाम के कुत्ते से बातचीत करते हुए सुना, तो वह उसकी गद्देदार कोठरी में घुस पड़ा। वहां वह डोरी के एक टुकड़े से बंधी हुई टूथपेस्ट हाथ में लिए बैठा था। क्या है यह? वार्डर ने पूछा। हैरी ने आश्चर्यचकित होकर उसे देखा, निश्चित रूप से कोई मूर्ख भी देख सकता है कि यह डोरी के एक टुकड़े में बंधी बस एक टूथपेस्ट की ट्यूब है, उसने कहा। संतुष्ट होकर वार्डर लौट गया। जैसे ही उसने अपने पीछे दरवाजा बंद किया, हैरी ने राहत की एक श्वास ली और कहा, तेवर, मेरे अच्छे बच्चे। उस समय हमने उसे निश्चित रूप से मूर्ख बना दिया।
जितना अधिक तुम दूसरों को मूर्ख बनाने में, यह सिद्ध करने में कि तुम कोई विशेष व्यक्ति हो, असाधारण हो, विशिष्ट हो, यह हो, वह हों-पागलपन के सभी विचार, जितना तुम इन्हें दूसरों के लिए सिद्ध करने में सफल होते हो, उतना ही अधिक तुम अपने आपको मूर्ख बनाने में सफल हो जाते हो। इसकी सारी मूढ़ता को देख लो।
कोई भी असाधारण नहीं है या प्रत्येक असाधारण है। कोई भी विशेष नहीं है या प्रत्येक व्यक्ति विशेष है। किंतु इसे किसी भी प्रकार से सिद्ध करने का कोई मतलब नहीं है-इसकी जरा भी आवश्यकता नहीं है।
कृत्रिमता से निर्मित मन केवल अस्मिता से ही अग्रसर होते हैं; इसलिए यदि तुम मौलिक मन पर आना चाहते हो-जो कि योग, तंत्र, झेन, सभी का पूरा प्रयास है-तो तुम्हें कृत्रिम मन का परित्याग करना पड़ेगा; वह मन जिसको समाज के द्वारा निर्मित किया गया है और तुम्हें दे दिया गया है, वह मन जिसे बाहर से बनाया गया है और तुम्हारे ऊपर थोप दिया गया है। धीरे-धीरे इसका परित्याग कर दो। जितना अधिक तुम इसको देखते हो, उतना ही अधिक तुम इसको छोड़ पाने में समर्थ हो जाते हो। जब भी तुम कृत्रिम मन से आसक्ति अनुभव करने लगो, जब कभी भी तुम कहो, 'मैं एक