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मैंने सुना है, ऐसा हुआ, एक मास्टर साहब गरीबी के कारण शीत ऋतु में भी सूती कपड़े पहने हुए थे। एक तूफान में पहाड़ों से एक भालू बह कर नदी में आ गया। उसका सिर पानी में छिपा हुआ था। उसकी पीठ देख कर बच्चे चिल्लाए मास्टर साहब, देखिए पानी में एक फर का कोट गिर पड़ा है, और आपको सर्दी लगा करती है। जाकर उसे ले आइए। मास्टर साहब ने अपनी जरूरत की मजबूरी के वश में फर का कोट लाने के लिए नदी में छलांग लगा दी। भ त उन पर आक्रमण किया और उनको पकड़ लिया। मास्टर साहब, किनारे पर खड़े बच्चे चिल्लाए या तो कोट को लेकर लौटें या उसे बह जाने दें और वापस लौट आएं। मैं फर का कोट बह जाने देने को राजी हूं मास्टर साहब चिल्लाए लेकिन फर का कोट मुझे वापस नहीं लौटने दे रहा है।
आदतों के साथ यही समस्या है : पहले तुम उनको विकसित करते हो, फिर धीरे-धीरे वे करीबकरीब तुम्हारा दूसरा स्वभाव बन जाती हैं। फिर तुम उनको छोड़ना चाहते हो, लेकिन उनको छोड़ देना इतना सरल नहीं है। क्या किया जाए?
तुमको .और सजग हो जाना पड़ेगा।
आदतों को छोड़ा नहीं जा सकता। उनको छोड़ने के केवल दो उपाय हैं : एक है आदत को किसी वैकल्पिक आदत से बदल लिया जाए लेकिन यह बस एक समस्या को दूसरी समस्या से बदल लेना है, इससे कोई बहुत अधिक मदद नहीं मिलने वाली है; दूसरा उपाय है और सजग हो जाना। जब कभी तुम किसी आदत को दोहराते हो, सजग हो जाओ। भले ही तुमको इसे दोहराना पड़े, दोहराओ इसे, लेकिन एक साक्षीभाव से, सजगता से, बोधपूर्वक दोहराओ। वह जागरूकता तुमको आदत से अलग कर देगी, और वह ऊर्जा जिसे तुम अनजाने में आदत को देते रहते थे अब और नहीं दी जाएगी। धीरेधीरे आदत सिकुड़ जाएगी, इसके माध्यम से जलधार का प्रवाह हो रहा था, रास्ता बंद हो गया है, अत: धीरे-धीरे यह लुप्त हो जाएगी।
कभी किसी आदत को दूसरी आदत से मत बदलों, क्योंकि सभी आदतें बुरी हैं। अच्छी आदतें तक बुरी हैं, क्योंकि वे आदते हैं। अशुद्ध आदतों को शुद्ध आदतों में बदलने का प्रयास मत करो। समाज के लिए यह अच्छा है कि तुम बुरी आदतों को अच्छी आदतों से बदल लो। रोज शराबखाने जाने के स्थान पर यदि तुम प्रतिदिन चर्च या मंदिर जाते हो तो समाज के लिए यह अच्छा है। किंतु जहां तक तुम्हारा प्रश्न है, इससे कोई बहुत सहायता नहीं मिलने वाली है। तुमको आदतों के पार जाना पड़ेगा। तभी यह सहायक होगा।
समाज चाहता है कि तुम नैतिक हो जाओ, क्योंकि अनैतिक होकर तुम कठिनाइयां पैदा करते होसमाज मिट जाता है। एक बार तुम नैतिक हो जाओ-समाज का काम समाप्त। अब समाज का यह काम नहीं रहा कि वह तुम्हारी चिंता करे। यदि तुम अनैतिक हो तो समाज का तुमसे मतलब समाप्त नहीं होता, तुम्हारे बारे में कुछ किया जाना शेष है। एक बार तुम नैतिक हो गए, समाज का काम