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डालने के लिए कोई है ही नहीं। मन रुकावट डालता है, अब वह मन नहीं रहा। वह कुछ ऐसा करने का प्रयास नहीं करेगा जिसको वह अच्छा समझता है, और वह किसी ऐसे कृत्य से बचने का भी प्रयास नहीं करेगा जिसे वह समझता है कि यह कार्य बुरा है। वह कुछ भी करने का प्रयास नहीं करेगा। वह केवल परमात्मा के हाथों में होगा और जो कुछ भी घटित होना ही है उस घटना को घटने
द में वह व्याख्या भी नहीं करेगा कि जो कुछ भी हआ था वह अच्छा है या बुरा। नहीं, एक समाधिस्थ व्यक्ति कभी पीछे नहीं देखता, कभी मूल्यांकन नहीं करता, कभी भविष्य में नहीं देखता, कभी योजना नहीं बनाता। जो कुछ भी उस क्षण द्वारा हो और वह क्षण को निर्णय करने देता है। उस क्षण में सभी कुछ एक साथ सहभागी हो जाता है। सारा अस्तित्व इसमें भाग लेता है, इसलिए कोई नहीं जानता कि क्या होगा?
लिन ची ने कहा : यदि मुझ पर कोई आक्रमण करता है, कोई नहीं जानता कि मैं क्या करूंगा। यह निर्भर करेगा कि आक्रमण कौन कर रहा है। वे गौतमबुद्ध हो सकते हैं, और यदि वे मुझ पर आक्रमण करते हैं तो मैं हंसूंगा। मैं उनके चरणस्पर्श कर सकता हूं कि मुझ पर बेचारे लिन ची पर आक्रमण करना उनकी कैसी करुणा है। किंतु यह उस क्षण पर निर्भर होगा, इतनी अधिक बातों पर निर्भर होगा कि इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है।
बस बीसवीं शताब्दी के आरंभ में ही सन उन्नीस सौ में एक महान वैज्ञानिक, मैक्स प्लैंक ने अभी तक खोजी गई महान खोजों में से एक खोज की है। उनको यह अनुभव हुआ और उन्होंने यह खोजा कि यह अस्तित्व सतत प्रवाह जैसा नहीं है, इसमें कोई सातत्य नहीं है। यह कोई ऐसा नहीं है जैसे कि तुम एक बर्तन से दूसरे बर्तन में तेल लौट दो। तो तेल के प्रवाह में एक सातत्य होता है; यह एक सतत धारा के रूप में गिरता है। मैक्स. प्लैंक ने कहा, अस्तित्व ऐसा है जैसे कि तुम एक डिब्बे से मटर के दाने दूसरे डिब्बे में डाल रहे हों-अनवरत प्रवाह नहीं है-मटर का प्रत्येक दाना अलग-अलग ढंग से अलग-अलग स्थान पर गिर रहा है। उसने कहा, सारा जीवन विच्छिन्न है। इन वि अवयवों को वह क्वांटा, तन्मात्रा कहता है। यही उसका तन्मात्रा सिद्धांत, क्वांटम थ्योरी है। क्वांटा का अर्थ है : प्रत्येक वस्तु दूसरी हर वस्तु से भिन्न है, और उसके सातत्य में नहीं है, और दो वस्तुओं के मध्य एक अंतराल है। अब यह अंतराल प्रत्येक चीज को सम्हाले हुए है, क्योंकि दो वस्तुएं परस्पर जुड़ी हुई नहीं हैं, दो परमाणु एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। वह अंतराल, वह रिक्तता दोनों को सम्हाले हुए है। वे प्रत्यक्षत: जुड़े हुए नहीं हैं, वे अंतराल के द्वारा जुड़े हुए हैं। अभी तक किसी ने मन के बारे में ऐसे ही समानांतर सिद्धांत पर ध्यान नहीं दिया है, लेकिन मन के बारे में ठीक यही बात है।
दो विचार एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं, और विचार विच्छिन्न होते हैं। एक विचार, अन्य विचार, अन्य विचार और इन विचारों के मध्य में अंतराल हैं, बहुत छोटे अंतराल-वह तुम्हारा अंतर-आकाश है। यही है जिसे मौलिक मन कहा जाता है। एक बादल गुजरता है, दूसरा बादल गुजरता है, दोनों के मध्य