________________
उसकी हड्डियां टूटी हुई थीं। वे लोग फिर एकत्रित हो गए, लेकिन इससे पूर्व कि वे एकत्रित होते के आदमी ने कहा, खामोश रहो! तुम लोग कब समझोगे? जीवन जटिल है।
सार रूप में पूर्वीय दृष्टिकोण यही है।
योगी मौलिक मन में रहता है, तथाता में जीता है जो कुछ भी घटता है, घट जाता है; वह कभी इसका मूल्यांकन नहीं करता है। और वह अपने से कुछ भी नहीं करता है, वह समग्र के लिए बस एक बन जाता है। समग्र उससे होकर प्रवाहित हो जाता है वह एक पोला बांस, एक बांसुरी जैसा बन जाता है। योगी वही करता है जो उसके पास परमात्मा से समग्र से आता है। इसीलिए भगवद्गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, चिंता मत करो और इस बारे में मत सोचो कि जो तुम करने जा रहे हो वह हिंसा होगी, और तुम अनेक लोगों को मार दोगे यदि परमात्मा की इच्छा यही होगी तो इसे होने दो। यदि वह मारना चाहता है, तो वह मार देगा, भले ही वह तुम्हारे माध्यम से मारे या किसी अन्य के माध्यम से मारे। कृष्ण कहते हैं, वास्तव में वह पहले से ही मार चुका है। तुम मात्र एक उपकरण हो, इसलिए अपने कृत्यों से बहुत अधिक तादात्म्य मत करो। साक्षी बने रहो।
'योगी के कर्म न शुद्ध होते हैं, न अशुद्ध न नैतिक होते हैं और न अनैतिक, लेकिन अन्य सभी त्रिआयामी होते हैं - शुद्ध, अशुद्ध, और मिश्रित ।'
जो कुछ भी सामान्य लोग कर रहे हैं- सामान्य से मेरा अभिप्राय है, वे लोग जिनको अभी अपने अस्तित्व का अंतर्तम केंद्र उपलब्ध नहीं हुआ है; वे लोग जो अपने मन के साथ जी रहे हैं. सामान्य हैं, जो लोग अपने आदर्शों और विचारों और विचारधाराओं और शास्त्रों के साथ जी रहे हैं, जो कुछ भी वे कर रहे हैं - या तो उनके कृत्य शुद्ध हैं, या उनके कृत्य अशुद्ध हैं, या उनके कृत्य मिश्रित हैं; लेकिन उनके कृत्य सहज नहीं हैं, मौलिक नहीं हैं। वे प्रतिकर्म करते हैं, वे कर्म नहीं करते। उनका प्रत्युत्तर क प्रतिकर्म होता है। यह कोई ऊर्जा का अतिशय प्रवाह नहीं है। वे ठीक अभी इस क्षण में नहीं जी रहे
हैं।
किसी ने झेन मास्टर लिन ची से पूछा, यदि कोई आए और आपके ऊपर आक्रमण कर दे, तो आप क्या करेंगे? उसने अपने कंधे झटक दिए और कहा : उसको आने दो और मैं देखूंगा। मैं पहले से तैयारी नहीं रख सकता। मैं नहीं जानता। मैं हंस सकता हूं या मैं रो सकता हूं या मैं उस व्यक्ति के ऊपर कूद कर उसकी हत्या कर सकता हूं। या हो सकता है कि मैं उस आदमी की जरा सी भी चिंता न लूं। किंतु मुझको पता नहीं। उस व्यक्ति को आने दो। वह क्षण स्वतः निर्णय कर लेगा, मैं नहीं । समग्र निर्णय लेगा, मैं नहीं। मैं कैसे कह सकता हूं कि मैं क्या करूंगा ?
एक संबुद्ध व्यक्ति मन के माध्यम से नहीं जीता है। उसके चारों ओर कोई ढांचा नहीं होता। एक विराट शून्यता है वह । कोई नहीं जानता उस क्षण में परमात्मा उसके माध्यम से किस प्रकार से कार्य करेगा। वह परमात्मा के कार्य में रुकावट नहीं डालेगा, बस उतनी सी बात है, क्योंकि वहा स्कावट