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तत्र ध्यानजमनाशयम् ।
मौलिक मन बिना किसी प्रेरणा के रहता है। यह बिना किसी कारण के रहता है। यह बिना किसी सहारे के रहता है। अनाशयम् का शाब्दिक अर्थ होता है किसी सहारे के बिना। यह बिना किसी आधार
के भूमि के बिना रहता है। इसका अस्तित्व अपने आप में है, इसको बाहर से कोई सहायता नहीं
,
मिलती। ऐसा होना ही है, क्योंकि परम कोई सहायता ले ही नहीं सकता, क्योंकि परम का अभिप्राय है संपूर्ण इसके बाहर कुछ भी नहीं है। तुम सोच सकते हो कि तुम पृथ्वी पर बैठे हो, और पृथ्वी सौरमंडल के चुंबकीय बल से सहारा पा रही है, और सौरमंडल के ग्रह किसी महासूर्य के गुरुत्वीय बल से सहारा पा रहे हैं। लेकिन संपूर्ण को कोई सहारा नहीं मिल सकता है, क्योंकि वह सहायता आएगी कहां से? संपूर्ण के पास इसके लिए कोई आधार नहीं होता ।
तुम बाजार जाते हो, निःसंदेह तुम्हारा कोई उद्देश्य होता है, तुम धन अर्जित करने जाते हो। तुम घर आते हो, तुम्हारे पास एक निश्चित उद्देश्य है, विश्राम करना। तुम भोजन करते हो, क्योंकि तुम भूखे हो; इसके लिए एक कारण है। तुम मेरे पास आए हो, इसका एक उद्देश्य है। तुम किसी चीज की तलाश में हो। यह चीज अस्पष्ट, स्पष्ट, ज्ञात, अज्ञात, कुछ भी हो सकती है, लेकिन उद्देश्य वहां है। लेकिन संपूर्ण का उद्देश्य क्या हो सकता है? यह उद्देश्य विहीन है, यह इच्छारहित है, क्योंकि प्रेरणा बाहर से कुछ लेकर आएगी। यही कारण है, हिंदू इसे लीला, एक खेल कहते हैं। खेल भीतर से आता है, तुम बस टहलने जा रहे हो, वहां कोई उद्देश्य नहीं है, स्वास्थ्य तक नहीं । स्वास्थ्य की सनक वाला व्यक्ति कभी टहलने नहीं जाता, वह जा ही नहीं सकता, क्योंकि वह टहलने का मजा नहीं ले सकता। वह हिसाब-किताब लगाता है, कितने मील? वह गणना कर रहा है, कितनी गहरी श्वासें? वह हिसाब जोड़ रहा है, कितना पसीना? वह गणित लगा रहा है। वह सुबह के टहलने को किए जाने वाले कार्य की भांति, एक अभ्यास की भांति ले रहा है। यह, मात्र एक खेल नहीं रह गया है।
अंग्रेजी शब्द इल्युजन का प्रयोग करीब-करीब हमेशा ही पूर्वीय शब्द माया के अनुवाद के रूप में किया जाता है। सामान्यतः इल्युजन का अर्थ होता है अवास्तविक, यथार्थ में जिसका अस्तित्व नहीं है। किंतु यह इसका सही अर्थ नहीं है। यह लैटिन मूल ज्यूडेरे से आता है, जिसका अर्थ है. खेलना। इल्युजन का अर्थ बस खेल है, और माया का यही वास्तविक अर्थ है माया का अर्थ भ्रम नहीं है, इसका अर्थ है खेलपूर्ण। परमात्मा स्वयं के साथ खेल रहा है। निःसंदेह वह अपने स्वयं के अतिरिक्त और कुछ था भी नहीं, इसलिए वह अपने स्वयं के साथ लुकाछिपी का खेल खेल रहा था, वह अपना एक हाथ छिपा देता है और दूसरे हाथ से इसको खोजने का प्रयास करता है, जब कि वह भलीभांति जानता है कि यह कहां है।
मौलिक मन निरुद्देश्य है, इसके होने का कोई कारण नहीं है। अन्य मन जो मौलिक नहीं हैं, बल्कि आरोपित कर दिए गए हैं, निःसंदेह वे उद्देश्यपूर्ण हैं, और उद्देश्य के कारण ही हम उनको परिपोषित करते हैं। यदि तुम एक चिकित्सक बनना चाहते हो तो तुमको एक खास प्रकार का मन विकसित