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अभी उस दिन आपने मेरे प्रश्न के उत्तर में जीवन को पूरी तरह से जीने और उसका आनंद लेने को कहा। लेकिन फिर जीवन क्या है? काम-भोग में संलग्न होने, धन कमाना, सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करना, और यही सब कुछ? यदि ऐसा है, तो व्यक्ति को दूसरों पर और उन सांसारिक वस्तुओं पर, जिनको निश्चित रूप से आगे जाकर बंधन बन जाना है, निर्भर होना पड़ेगा। और क्या यह खोजी की खोज को बहुत लंबा भी नहीं बना देगी?
हा, जीवन यही सब कुछ है जिसकी तुम कल्पना और अभिलाषा कर सकते हो। काम- भोग
सम्मिलित है, धन सम्मिलित है, मनुष्य का मन जिसकी अभिलाषा कर सकता है, वह प्रत्येक वस्तु इसमें सम्मिलित है। लेकिन तुम एक अटकाव वाला जीवन जीते हो। प्रश्न को लिखे जाने में भी तुम्हारी निदाएं पूरी तरह स्पष्ट रूप से साफ दिखाई दे रही हैं।
तुम कहते हो. 'अभी उस दिन आपने मेरे प्रश्न के उत्तर में जीवन को पूरी तरह से जीने और उसका आनंद लेने को कहा। लेकिन फिर जीवन क्या है? काम- भोग में संलग्न होना, धन कमाना, सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करना, और यही सब कुछ?' निंदा स्पष्ट है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रश्न पूछने से पूर्व ही उत्तर का तुम्हें पता है। तुम्हारी सीख नितांत स्पष्ट है-काम- भोग को काट दो, प्रेम को काट दो, धन को काट दो, लोगों को काट दो। फिर वहां किस प्रकार का जीवन बचेगा?
इसे समझना पडेगा। जीवन शब्द का अपने में, यदि तुम हर बात को काटते चले जाओ तो कोई अर्थ नहीं है। और प्रत्येक बात की निंदा की जा सकती है। भोजन का आनंद लेना ही जीवन है; कोई भी इसकी निंदा कर सकता है; क्या मूर्खता है! बस भोजन को चबाना और इसे भीतर निगल लेना! क्या
वन हो सकता है? फिर श्वास लेना, बस वाय भीतर लेना, इसको बाहर फेंक देना, इसे भीतर लेना, इसे बाहर फेंक देना-कितनी ऊब! और किसलिए? फिर प्रात: शीघ्र ही उठ जाना और संध्या को सोने चले जाना, और कार्यालय जाना और दुकान जाना, और हजारों प्रकार की पीड़ाएं। क्या यही जीवन है? फिर किसी स्त्री के साथ सहवास करना? बस दो गंदे शरीर! किसी स्त्री का चंबन लेना और व नहीं बल्कि लार और लाखों जीवाणुओं का आदान-प्रदान। जीवाणुओं के बारे में सोचो यह तो स्वास्थ्यदायी भी नहीं है, निश्चित रूप से यह अधार्मिक है। यह स्वास्थ्य के लिए न वाला भी है।
चाने
तो जीवन क्या है? प्रत्येक बात को समग्र के संदर्भ में लो और यह अर्थहीन, असंगत दिखाई पड़ती है। इसी कारण धार्मिक लोग जीवन को युगों से निंदित करते आ रहे हैं। उनको तुम कोई भी चीज दे दो
और वे इसको निंदित करने में समर्थ हो जाएंगे। वे कहेंगे, शरीर है क्या? बस खाल का एक थैला भर है, जिसमें लाखों गंदी चीजें भरी हुई हैं। जरा थैला खोलो और देख लो। और तुम पाओगे कि वे सही