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हैं। लेकिन क्या तुमने दूसरा प्रश्न पूछा है? ये लोग किसी ऐसी वस्तु की आशा लगा रहे थे जो उनको वहां नहीं मिली। खाल के इस थैले के भीतर क्या तुम सोने की उम्मीद लगा रहे थे, या खाल के थैले में हीरे? क्या तब चीजें बेहतर हो जाती? दूसरा प्रश्न पूछो, तुम क्या उम्मीद लगा रहे थे? जो शरीर तुम्हारे पास है तुम इससे बेहतर और अधिक सुंदर शरीर को नहीं पा सकते, और तुम भीतर गंदगी देखते रहते हो। तुम उस सुंदर कार्य को नहीं देखते जो यह करता रहता है।
सारा शरीर कितनी गहन कुशलता से, कितनी शांति से, सत्तर, अस्सी या सौ साल तक कार्यरत रहता है। शरीर में कार्यरत ऊर्जा के स्पंदन को, ऊर्जा की धड़कन को देखो। लेकिन ऐसे लोग हैं जो हमेशा कुछ न कुछ गलत खोज सकते हैं। भले ही यह कुछ हो, वे कुछ न कुछ गलत खोज सकते हैं। तुम उनको एक गुलाब दिखाओ और वे उसे पौधे से तोड़ लेंगे और कहेंगे, यह क्या है? यह कुछ ही घंटों में मुर्दा हो जाएगा। हां, यह विदा हो जाएगा, ऐसे सारा सौंदर्य खो जाता है। उन्हें तुम एक सुंदर इंद्रधनुष दिखाओ, और वे कहेंगे, यह भ्रम है। तुम वहां जाओ तुम्हें कुछ न मिलेगा। यह बस प्रतीत होता है कि है। ये महान निंदक जीवन को विषाक्त करने वाले हैं। उन्होंने हर चीज को विषाक्त कर दिया है, और तमने उनकी बातों को बहत अधिक सन रखा है। अब तम यह पाते हो कि जीवन का आनंद ले पाना तुम्हारे लिए करीब-करीब असंभव हो चुका है। लेकिन तुम यह कभी नहीं सोचते कि जीवन का आनंद ले पाने की इस अक्षमता को तुम्हारे तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने निर्मित किया है। उन्होंने तुम्हारे अस्तित्व को विषाक्त कर दिया है। उस समय भी जब तुम किसी स्त्री का चुंबन ले रहे होते हो तुम्हारे भीतर वे तुम्हें बताए चले जाते हैं, यह क्या कर रहे हो तुम? यह मूर्खता है। इसमें कुछ नहीं रखा है। जब तुम भोजन कर रहे होते हो, वे कहे चले जाते है, तुम क्या कर रहे हो? इसमें कुछ नहीं रखा है। उन निंदकों ने एक बड़ा काम कर डाला है।
और यह मूलभूत समस्याओं में से एक है। प्रशंसा करना कठिन है और निंदा करना सरल है। प्रशंसा करना बहुत कठिन है क्योंकि तुम्हें विधायक रूप से कुछ सिद्ध करना पड़ेगा। केवल तभी तुम प्रशंसा करू सकते हो। एक श्रेष्ठ जर्मन कवि हेनरिक हेन अपने संस्मरणों में लिखता है. एक बार मैं एक बड़े दर्शनशास्त्री हीगल के साथ खड़ा हुआ था, और यह एक सुंदर शीतल रात्रि थी-अंधेरी, शांत, और सारा आकाश सितारों के सौंदर्य से जगमगा रहा था। निःसंदेह कवि ने इसकी प्रशंसा करनी आरंभ कर दी, और उसने कहा, कितना सौंदर्य, कैसा आत्यंतिक सौंदर्य। और उसने आगे कहा, मैं सदैव सोचता था कि यदि व्यक्ति केवल भइम को देखता है और कभी आकाश को नहीं देखता तो वह नास्तिक हो सकता है। लेकिन एक व्यक्ति जो आकाश की ओर देखता हो वह नास्तिक कैसे हो सकता है? असंभव है यह। लेकिन धीरे-धीरे वह थोड़ा असहज हो गया क्योंकि हीगल पूरी तरह से चुपचाप था, उसने एक शब्द भी नहीं बो ला था। उसने हीगल से पूछा, महोद्रय, आप क्या सोचते हैं? और हीगल ने कहा, मैं कोई सौंदर्य या कोई बात नहीं देख पाता हूं। आप इन सितारों की बात कर रहे हैं? वे और कुछ नहीं बल्कि आसमान का कोढ़ हैं। कोढ़.......!