________________
नहीं सकता। तुम इसके बारे में विचार नहीं कर सकते, क्योंकि जिस क्षण तुम किसी के बारे में विचार करते हो, तो यह पहले से ही अतीत हो गया है, या यह अभी भी वर्तमान नहीं है। विचार करने के लिए समय चाहिए। इसलिए यह सूत्र है कि केवल ध्यान के माध्यम से ही व्यक्ति मौलिक मन पर आता है।
ध्यान कोई विचार करना नहीं है, यह विचार का त्याग है।
मैंने सुना है, एक वृद्ध किसान से जब यह पूछा गया कि सारा दिन वह क्या किया करता है, तो उसने कहा, अच्छा, कभी-कभी मैं बैठता हूं और सोचता हू और बाकी समय मैं मात्र बैठता हूं।
यह 'मात्र बैठना' ही ध्यान का ठीक-ठीक अर्थ है। जापान में वे ध्यान को झाझेन कहते हैं। झाझेन का अर्थ है मात्र बैठना और कछ न करना, बस होना और कछ न करना, मन की निलंबित सक्रियता। और बादल छंट जाते हैं और तुम अंतरिक्ष को, आकाश को देख सकते हो। एक बार तुम जान लो कि अंतर-आकाश में कैसे जाया जाए, तो यह सदा के लिए उपलब्ध हो जाता है। तुम कार्य करते रह सकते हो और जब कभी भी तुम चाहो तुम भीतर एक डुबकी लगा सकते हो। और यह इतना सरल हो जाता है जैसे कि तुम मकान के भीतर जाते हो और मकान से बाहर निकल आते हो। एक बार तुमने जान लिया कि द्वार कहां है, तब कोई समस्या नहीं रहती। तुम इसके बारे में सोचते भी नहीं। जब बाहर तेज गर्मी अनुभव हो रही हो, तुम मकान के भीतर शीतलता और आश्रय में चले जाते हो।
जब अधिक सर्दी लगने लगी हो और तुम ठंड के कारण जमने लगे हो, तुम मकान से बाहर गर्म धूप में निकल आते हो। बाहर और भीतर के मध्य तुम एक तरलता बन जाते हो।
अंदर के रास्ते को मन अवरुद्ध कर रहा है। जब कभी भी तुम अपने भीतर जाते हो, बार-बार तुमको मन की कोई पर्त मिल जाती है। किसी विचार के अंश, कोई इच्छा, कोई योजना, कोई स्वप्न, भविष्य का कुछ या अतीत का कुछ। और याद रहे, भविष्य और कुछ नहीं बल्कि अतीत का प्रक्षेपण है। भविष्य है अतीत का थोड़ा परिष्कृत ढंग से, कुछ बेहतर रूप में पुन: चाहत। अतीत में तुम्हारे पास प्रसन्नता थी और अप्रसन्नता थी, खुशी थी, दुख था, कांटे थे, फूल थे। तुम्हारा भविष्य और कुछ नहीं है केवल फूल हैं, कांटे हटा दिए गए हैं, दुख छोड़ दिए गए है-बस खुशियां और खुशियां, और खुशियां। तुम अपने अतीत की छंटनी करते रहते हो, और जो कुछ भी तुम्हें अच्छा और सुंदर अनुभव हुआ था उसको तुम भविष्य में प्रक्षेपित कर देते -हो।
एक बार तुम जान लो कि अतीत से किस भांति बाहर आया जाए, तो भविष्य स्वत: ही तिरोहित हो जाता है। जब भीतर कोई अतीत नहीं होता तो कोई भविष्य नहीं हो सकता है। अतीत भविष्य को उत्पन्न करता है। अतीत भविष्य की जननी, भविष्य का गर्भ है। जब न कोई अतीत है और न भविष्य, तब जो है वही है। फिर जो है है। तभी अचानक तुम शाश्वतता में होते हो।