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करना आरंभ कर दी। करने को क्या था? और करता भी क्या? तीन वर्ष तक उसने परमात्मा से बातें की और धीरे-धीरे वह उपदेश देने लगा। परमात्मा उसका एक मात्र श्रोता था। वह खड़ा हो जाता और वह उपदेश करता। लेकिन वे उपदेश वास्तव में सुंदर थे।
अब कारागृह से बाहर निकल कर उसने उन उपदेशों को एकत्रित किया और उसने उन्हें वैसा ही रखा है जैसा उसने उन्हें परमात्मा से बोला था। वह कहता है, 'अपमानित अनुभव न करें।' क्योंकि अनेक बार वह परमात्मा से क्रोधित हो जाता है। व्यक्ति को क्रोधित होना पड़ेगा। क्या मूर्खता है : तीन साल के लिए! वह शास्त्रों से उद्धरण देता है और परमात्मा से कहता है, उसे देखो जो तुमने कहा हुआ है। बाइबिल में तुम कहते हो कि मनुष्य को कभी अकेला नहीं रहना चाहिए। मेरे बारे में क्या? क्या तुम अपने धर्मशास्त्र के बारे में, और अपना वह संदेश जो जीसस के माध्यम से दिया था, उसके बारे में सब कुछ भूल चुके हो? कहां हो तुम? क्या तुमने अपने नियम बदल लिए हैं? एक व्यक्ति को कभी अकेला नहीं होना चाहिए? तो तुमने मुझको तीन साल तक क्यों अकेला रहने के लिए बाध्य किया? और वह कहता है, याद रहे, फैसले वाले दिन मैं अकेला ही गुनाहगार न होऊंगा, तुम भी वहां गुनाहगार बन कर खड़े रहोगे। न केवल तुम मेरे पापों के बारे में बताओगे, मैं भी तुम्हारे पापों के बारे में बताऊंगा। याद रहे! इसे भूलना मत! यह मामला एक तरफा नहीं होने जा रहा है।
वास्तव में ये संवाद, ये परमात्मा के साथ वार्तालाप सुंदर हैं। उन्हीं वार्तालापों के कारण वह सामान्य रहा। वह कारागृह से पूर्णत: स्वस्थ बाहर आया, उससे भी अधिक सामान्य जैसे मानसिक स्वास्थ्य के साथ वह भीतर गया था-अधिक स्वस्थ। ऐसा सुंदर संबंध.. .और परमात्मा पूरी तरह मौन था। यह क्षुब्ध करता है। तुम बात किए चले जाते हो; वह कुछ नहीं कहता, ही, नहीं-कुछ भी नहीं।
जरा सोचो, तुम बोलते चले जाओ और तुम्हारी पत्नी चुपचाप रहे। वह रसोई में काम करती रहे। तुम पगलाए जा रहे हो और तुम चीख रहे हो और चिल्ला रहे हो और वह खामोशी से अपना काम किए चली जा रही है। कैसा महसूस होगा तुमकी? परमात्मा के संबंध में ऐसा ही घटित होता है 1 व्यक्ति को इसे जीवन में सीखना पड़ता है, तभी तुम परमात्मा से संबंधित हो सकते हो। परमात्मा से संबंधित होना समग्र से संबंधित होना है। निःसंदेह वह समग्र मौन है, और उससे संबंधित होने के लिए बहुत कुशलता की आवश्यकता है केवल तभी संबंध हो पाता है। जब तुम परमात्मा से संबंधित हो चुके हो और तुम उस में विलीन हो गए हो, तभी एकांत घटता है।
एकांत अंतिम उपलब्धि है।
यही है जिसको पतंजलि कैवल्य कहते हैं : आत्यंतिक एकांत। यह कोई आरंभ में नहीं है, यह अंत में है। यही कारण है कि हम अंतिम अध्याय पढ़ रहे हैं यह अध्याय एकांत के बारे में है, कैवल्यपाद। योगी का अनेक जन्मों से सारा प्रयास यही है कि किस भांति स्वात त जाए। यह इतना सस्ता नहीं है। जितना तुम सोचते हो कि तुमने बस घर छोड़ दिया और तुम सी गुफा में चले गए