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अभी, इसी क्षण है। वह जिसको तुम खोज रहे हो स्वयं खोजी के भीतर छिपा हुआ है, खोजने वाला ही खोजा जाने वाला है। इसीलिए इतनी अधिक विक्षिप्तता, इतना ज्यादा पागलपन है।
एक बार तुम्हारा मन कहीं केंद्रित हो जाए, तुम्हारा कुछ उद्देश्य बन जाता है। तत्क्षण तुम्हारा अवधान अब मुक्त नहीं रह पाता। उद्देश्य अवधान को पंगु बना देता है। यदि तुम उद्देश्य पूर्वक कुछ तलाश कर रहे हो, तुम्हारी चेतना सिकुड़ जाती है। यह अन्य सभी वस्तुओं से हट जाएगी, यह केवल तुम्हारी अभिलाषा, तुम्हारी आशा, तुम्हारे स्वप्न पर सिमट जाएगी। और जो तुम हो उसके साक्षात के लिए तुम्हें किसी उद्देश्य की आवश्यकता नहीं है, तुम्हें अवधान की आवश्यकता है, बस शुद्ध अवधान; कहीं जाने का कोई उद्देश्य नहीं, विकेंद्रित चेतना कहीं और की नहीं-अभी और यहीं की चेतना। मूलभूत समस्या यही है. कुता अपनी पूंछ का पीछा कर रहा है, वह निराश हो जाता है, वह करीब-करीब पागल हो जाता है, क्योंकि हर बार वह आगे बढ़ता है और उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता-केवल असफलता, विफलता और पराजय मिलती है।
अभी उस दिन एक संन्यासी ने मुझसे कहा कि अब वह निराशा अनुभव कर रहा है। यह सुन कर मैं बहुत खुश हुआ। क्योंकि जब तुम निराशा अनुभव करते हो तो तुम्हारे भीतर कुछ खुल जाता है। जब तुम निराशा अनुभव करते हो, यदि वास्तव में निराश हो तो भविष्य खो जाता है। भविष्य केवल अपेक्षा, अभिलाषा और उद्देश्य के सहयोग से बना रह सकता है। भविष्य उद्देश्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। मैं बेहद खुश हुआ कि चलो एक व्यक्ति तो निराश हुआ।
इस सदी के सर्वाधिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों में से एक फ्रिटज पर्ल्स ने कहा है कि थेरेपिस्ट का कुल काम कुशलतापूर्वक निराशा उत्पन्न करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
क्या है उसका अभिप्राय? उसका अभिप्राय है कि जब तक तुम अपनी अभिलाषाओं, आशाओं, अपेक्षाओं से वास्तव में निराश नहीं हो जाते, तुमको तुम्हारे अस्तित्व में वापस नहीं फेंका जा सकता। वास्तविक निराशा एक महत् आशीष है। अचानक तुम होते हो और वहां अन्य कुछ भी नहीं होता। उस संन्यासी ने कहा, मझको निराशा अनभव हो रही है। ऐसा लगता है कि कछ भी नहीं घट रहा है। मैं हर प्रकार के ध्यान, हर प्रकाश की सामूहिक मनोचिकित्सा में भागीदारी करता रहा हूं और हो कुछ भी नहीं रहा है। सभी ध्यान विधियों का और सभी सामूहिक मनोचिकित्साओ का कुल मतलब यही है कि तुम्हें बोध हो जाए कि कुछ भी घट नहीं सकता। सब कुछ पहले ही घट चुका है। गहन निराशा में तुम्हारी ऊर्जा उदगम पर वापस लौट जाती है। तुम अपने आप में गिर जाते हो।
तुम नई आशा निर्मित करने का प्रयास करोगे। इस कारण से लोग अपने थेरेपिस्ट, अपनी थेरेपियां, अपने शिक्षकों, अपने गुरुओं, धर्मों को बदलते चले जाते हैं। वे बदलते चले जाते हैं, क्योंकि वे कहते हैं, अब यहां मुझे निराशा अनुभव हो रही है, अब किसी अन्य स्थान पर मैं पुन: आशा के नये बीज बोऊंगा। तब तुम लगातार चूकते जाओगे। यदि तुम समझ लो समस्या यह है कि तुम्हें तुम्हारे ऊपर