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है। एक तरह से वह समाधि में है, वह परमात्मा के गर्भ से बाहर आ रहा है। उसकी जीवन-सरिता अभी भी अपने स्रोत से ही आत्यंतिक रूप से ताजी है। वह सत्य को जानता है, लेकिन उसे नहीं पता कि वह जानता है। उसे बिना यह जाने कि उसे पता है इसका ज्ञान है। यह जानकारी बिलकल सरल है। वह यह कैसे जाने कि वह जानता है? –क्योंकि यहां कभी भी अज्ञान का कोई क्षण नहीं होता है। यह अनुभव करने के लिए कि तुमको कुछ पता है, तुम्हारे पास न जानने का भी कुछ अनुभव होना चाहिए। अज्ञान के बिना तुम ज्ञान का अनुभव नहीं कर सकते। अंधकार के बिना तुम सितारे नहीं देख सकते। दिन में तुम सितारे नहीं देख पाते हो क्योंकि चारों ओर प्रकाश होता है। रात्रि में तुम सितारे देख लेते हो क्योंकि सब ओर अंधकार है, विरोधाभास की आवश्यकता होती है। बच्चे का जन्म संपूर्ण प्रकाश में होता है, वह यह अनुभव नहीं कर सकता कि यह प्रकाश है। इसे अनुभव करने के लिए उसको अंधकार के अनभव से होकर गजरना पडेगा। तभी वह तलना करने और देखने में समर्थ हो सकेगा और जान लेगा कि वह जानता है। अभी तक उसका ज्ञान सजग नहीं है। वह अबोध है। वह बस एक तथ्य की भांति वहां होता है। और वह अपने ज्ञान से पृथक नहीं है। वह स्वयं अपना ज्ञान है। उसके पास कोई मन नहीं है, उसके पास सरल अस्तित्व है।
जो पतंजलि कह रहे हैं वह यह है : जिसको तुम खोज रहे हो उसे तुम पहले से ही जानते हो। बिना यह जाने कि तुम इसे पहले ही जान चुके हो। वरना इसको खोजने का कोई उपाय नहीं होता। क्योंकि हम केवल उसी चीज को खोज सकते हैं जिसे हम किसी भी ढंग से पहले से जानते हों-भले ही बहुत धुंधले, अस्पष्ट रूप से जानते हों। शायद बोध इतना स्पष्ट नहीं था, यह कुहासे के मेघों से आच्छादित था, किंतु तुम किसी ऐसी चीज को कैसे खोज सकते हो जिसे तुमने पहले कभी जाना ही न हो? तुम परमात्मा को कैसे खोज सकते हो? तुम आनंद को कैसे खोज सकते हो? तुम सत्य को कैसे खोज सकते हो? तुम आत्म को, परम आत्म को कैसे खोज सकते हो? तुमने इसका कुछ न कुछ स्वाद अवश्य लिया होगा, और वह स्वाद, उस स्वाद की स्मृति अभी भी तुम्हारे अस्तित्व के स्मृति कोष में संचित है। किसी बात से तुम चूक रहे हो, इसी कारण तलाश, खोज उत्पन्न होती है।
समाधि का पहला अनुभव, असीम शक्ति, सिद्धि, अंतशक्ति, परमात्मा होने का पहला अनुभव जन्म के समय प्रकट होता है। परंतु उस समय तुम इसको ज्ञान में नहीं डाल सकते। उसके लिए तुमको आत्मा की अंधेरी रात से होकर गुजरना पड़ेगा, तुम्हें भटकना होगा। इसके लिए तुमको पाप करना पड़ेगा।'पाप' शब्द बहुत अच्छा है। इसका मतलब है रास्ते से भटक जाना, ठीक रास्ते से चूक जाना, या लक्ष्य से चकना, मंजिल से भटक जाना। आदम को अदन के बगीचे से बाहर निकलना पड़ा था। यह एक अनिवार्यता है। जब तक कि तुम परमात्मा को खो न दो, उसे जानने में तुम समर्थ न हो सकोगे। जब तक कि तुम उस बिंदु पर न पहुंच जाओ जहां तुम नहीं जानते कि परमात्मा है या नहीं, जब तक कि तुम उस बिंदु तक न पहुंच जाओ जहां तुम संताप, दुख और पीड़ा से ग्रस्त हो जाओ, तुम कभी न पाओगे कि आनंद क्या है। संताप समाधि का द्वार है।