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दिन करीब-करीब आनंदमग्न, जैसे कि समाधि में हो......मदहोश। उसके शिष्य उसको मेरे पास लेकर आए थे। वह मेरे पास तीन दिन रुका। मैंने उससे कहा. एक काम करो, तीस साल से तुम एक जप कर रहे हो, तीन दिन के लिए इसे बंद कर दो। उसने पूछा : क्यों? मैंने कहा : केवल यह जानने के लिए कि अभी तुम्हारे साथ यह घटा है या नहीं। यदि तुम जप करते रहे तो तुम कभी न जान पाओगे। इस सतत जप करने से हो सकता है कि यह मदहोशी तमने ही निर्मित कर ली हो। तीन दिन के लिए तुम इसको रोक दो और बस देखो। वह थोड़ा सा घबड़ाया, लेकिन उसकी समझ में बात आ गई।
क्योंकि जब तक कोई चीज इतनी स्वाभाविक न हो जाए कि तुम्हें उसे करने की आवश्यकता ही न पड़े, तब तक वह तुम्हें उपलब्ध नहीं हुई है।
बस तीन दिन के भीतर ही सब कुछ तिरोहित हो गया; बस तीन दिन के भीतर। कोई तीस साल का प्रयास और तीसरे दिन वह आदमी रोने लगा और वह बोला, आपने यह क्या किया? आपने मेरी पूरी साधना नष्ट कर डाली। मैंने कहा. मैंने कुछ भी नष्ट नहीं किया; तुम दुबारा से शुरू कर सकते हो। लेकिन अब एक बात याद रखो, यदि तुम तीस जन्म भी जप करते रहे तो भी तुम्हें वह न मिलेगा। यह मार्ग नहीं है। तीस साल के सतत प्रयास के बाद भी तुम तीन दिन के अवकाश पर नहीं जा सकते, यह तो बंधन प्रतीत होता है, और यह अभी तक सहज नहीं हो सका है। अब भी यह तुम्हारा भाग नहीं बन सका है, तुम्हारा विकास नहीं हुआ है। इन तीन दिनों ने तुम्हारे समक्ष उदघाटित कर दिया है कि तीस सालों से सारा प्रयास गलत दिशा में जा रहा था। अब यह तुम पर निर्भर है। यदि तम जप जारी रखना चाहते हो, जारी रखो, लेकिन याद रखो, अब यह मत भलना कि किसी भी दिन यह खो सकता है; यह एक स्वप्न है जिसको तुमने सतत जप के द्वारा पकड़ रखा है। यह एक निश्चित तरंग है, जिसे तुम पकड़े हुए हो, किंतु यह वहा से उठ नहीं रही है। यह कृत्रिम रूप से निर्मित और पोषित है; अभी यह तुम्हारा स्वभाव नहीं बन पाई है।
तीसरा उपाय है : तपश्चर्याओं दवारा अपने जीवन के ढंग को परिवर्तित करके भोजन, निद्रा, कामवासना की सुविधा, सहूलियत की चाहत न करके, वह सभी कुछ जो मन स्वभावत: चाहता है और इसका ठीक विपरीत करना। यह मंत्रों से फिर भी कुछ ऊपर है। यदि मन कहे, सो जाओ तो तपश्चर्या वाला व्यक्ति कहेगा, नहीं, मैं सोने नहीं जा रहा हूं मैं तुम्हारा दास बनने नहीं जा रहा हूं-जब मैं सोना चाहूंगा तभी मैं सोऊंगा, अन्यथा नहीं। मन कहता है, तुम को भूख लगी है, अब जाओ और व्यवस्था बनाओ। तपश्चर्याओं वाला व्यक्ति कहता है, नहीं। तपश्चर्याओं वाला व्यक्ति अपने मन को लगातार नहीं कहता है। तपश्चर्या यही है, मन को न कहना। निःसंदेह यदि तुम अपने मन को लगातार नहीं कहते जाओ तो तुम पर मन के बंधन ढीले हो जाते हैं। तब मन तुम पर और अधिक समय हावी नहीं रह पाता, तब तुम थोड़ा सा मुक्त हो जाते हो। लेकिन इस नहीं को लगातार कहते रहना पड़ता है। यदि तुम एक दिन के लिए भी मन की सुन लो, पुन: मन की पूरी शक्ति तुम पर हावी होने और