________________
ठीक यही घटता है जब तुम किसी मंत्र का एक शब्द के सतत उच्चारण का प्रयोग करते हो। इसे ओम, राम, अवे मारिया या अल्लाह से कुछ लेना-देना नहीं है, इसका उनसे कोई सरोकार नहीं है। तुम कुछ भी, जैसे ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह, कह सकते हो, वह भी चलेगा। लेकिन तुमको वही-वही ध्वनि उसी सुर में, उसी लय में दोहराना पड़ेगी। यह बार-बार उसी केंद्र पर संघात करती चली जाती है और इससे तरंगें, कंपन और स्पंदन निर्मित होते हैं। वे तुम्हारे अस्तित्व के भीतर प्रविष्ट हो जाते हैं और प्रसारित हो जाते हैं। वे ऊर्जा के वर्तुल निर्मित करते हैं। यह औषधियों से श्रेष्ठ है, लेकिन फिर भी इसका गुणवत्ता वही है।
इसीलिए कृष्णमूर्ति कहे चले जाते हैं कि मंत्र एक औषधि है। यह औषधि है, और वे कोई नई बात नहीं कह रहे हैं; पतंजलि भी यही कहते हैं। यह औषधि की तुलना में बेहतर है, तुम्हें किसी इंजेक्यान की आवश्यकता नहीं रहती, तुम किसी बाह्य साधन पर निर्भर नहीं रहते। तुम किसी औषधि-विक्रेता पर निर्भर नहीं रहते, क्योंकि हो सकता है कि वह तुम्हें ठीक चीज न दे रहा हो। वह तुम्हें कुछ नकली चीज पकड़ा सकता है। तुम्हें किसी पर निर्भर होने की जरूरत नहीं रहती। यह औषधियों की तुलना में अधिक स्वावलंबी है। तुम अपने भीतर अपना मंत्रदोहरा सकते हो, और समाज से यह और अधिक तालमेलपर्ण है। यदि तम ओम, ओम, ओम दोहराओं तो समाज कोई आपत्ति नहीं करगा, किंत यदि तम एल एस डी ले रहे हो तो समाज आपत्ति करेगा। मंत्र-जाप बेहतर है, अधिक सम्मानजनक है, लेकिन फिर भी यह औषधि है। यह ध्वनि ही है जिसके दवारा तुम्हारे शरीर का रसायन तंत्र बदल जाता है।
अब ध्वनि, संगीत, जाप के ऊपर अनेक प्रयोग चल रहे हैं। यह निश्चित रूप से रसायनों को बदल देता है। यदि किसी पौधे को एक खास किस्म के संगीत के माहौल में निश्चित रूप से शास्त्रीय या भारतीय, आधुनिक पाश्चात्य संगीत नहीं रखा जाए तो यह तेजी से बढ़ता है। अन्यथा विकास अवरुद्ध हो जाएगा या पौधा पगला जाएगा। सूक्ष्म कंपनों के साथ, श्रेष्ठ ताल और लयबद्धता के साथ पौधा तेजी से बढ़ता है। उसकी वृद्धि करीब-करीब दो गुना हो जाती है, और उस पर लगने वाले पुष्प और बड़े और रंगीन हो जाते हैं, वे अधिक समय तक टिकते हैं और उनसे अधिक सुगंध आती है। अब ये वैज्ञानिक सत्य हैं। यदि ध्वनियों से एक पौधा इतना अधिक प्रभावित होता है तो मनुष्यों पर और अधिक प्रभाव होगा। और यदि तुम एक भीतरी ध्वनि, एक अनवरत कंपन उत्पन्न कर सको, तो यह तुम्हारे शरीर क्रिया विज्ञान, तुम्हारे दैहिक रसायन तंत्र-तुम्हारे मन, तुम्हारे शरीर को बदल डालेगा-लेकिन फिर भी यह बाहरी सहायता है। अभी भी यह एक प्रयास है; तुम कुछ कर रहे हो। और कुछ करते हुए तुम एक अवस्था निर्मित कर रहे हो जिसे बनाए रखना है। यह स्वाभाविक रूप से सहज नहीं है। यदि तुम कुछ दिन इसे बनाए न रख सको तो यह विलीन हो जाएगी। अत: यह भी विकास नहीं है।
एक बार एक सूफी मेरे पास आया। तीस सालों से वह एक सूफी मंत्र का अभ्यास कर रहा था, और उसने इसे बहुत निष्ठापूर्वक किया था। वह कंपनों से भरा हआ था-बहत जीवंत, बहत प्रसन्न, सारे