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'आकस्मिक कारक प्राकृतिक प्रवृत्तियों को सक्रिय होने के लिए प्रेरित नहीं करता, यह तो बस अवरोधों को हटा देता है-जैसे खेत सींचता हुआ किसान; वह बाधाओं को हटा देता है और तब पानी स्वतः ही मुक्त होकर प्रवाहित होने लगता है।'
पतंजलि कह रहे हैं कि वास्तव में यदि तुम्हारे भीतर अवरोध न हों तो हर चीज को स्वाभाविक रूप से प्राप्त किया जा सकता है। यह कुछ निर्मित करने का प्रश्न नहीं है, प्रश्न तो केवल बाधा को हटाने का है। यह तो बस ऐसा ही है कि झरना वहा हो और एक चट्टान उसका रास्ता रोक रही हो उसके पीछे इसकी जलधार बह रही है लेकिन यह चट्टान को नहीं हटा सकती। यह झरना, यह जल निर्मित नहीं करना पड़ता है, यह पहले से ही वहां है, तुम्हें तो बस चट्टान हटा देनी है और यह आगे की ओर फूट पड़ता है, यह फव्वारे की भांति है, तुम तो बस चट्टान हटा दो और यह ऊपर की ओर फूट पड़ता है, यह खिल जाता है बच्चे के पास यह स्वभावतः होता है, तुम्हें इसे समझ के द्वारा अर्जित करना पड़ता है और तुम्हें उन सभी अवरोधों को छोड़ना पड़ेगा जो समाज ने तुम्हारे ऊपर थोप रखे हैं।
समाज कामवासना के विरोध में है, उसने काम-केंद्र के ठीक पास में एक अवरोध निर्मित कर दिया है। जब कभी कामवासना उठती है तुम बेचैनी अनुभव करते हो, तुम्हें अपराध बोध होता है, तुम भयभीत अनुभव करते हो। तुम सिकुड़ जाते हो, तुम प्रवाहित नहीं होते, तुम बहते नहीं हो। समाज क्रोध के विरोध में है; उसने वहां एक अवरोध निर्मित कर दिया है। इसलिए क्रोध आता है, लेकिन तुम इसमें पूरी तरह नहीं जा पाते हो तुम्हें इन सभी अवरोधों को छोड़ना पड़ेगा।
इसी कारण से मैं ध्यान की सक्रिय विधियों पर जोर देता हूं। वे तुम्हारे अवरोधों को पिघला देंगी। यदि तुम क्रोधित हो, तो चीखो, चिल्लाओ। किसी व्यक्ति पर चीखने और चिल्लाने की आवश्यकता नहीं है, बस एक तकिया ही काम कर जाएगा। तकिए को पीटो, इस पर कूद पड़ो तकिए को मार डालो। किसी व्यक्ति को मारने की कोई जरूरत नहीं है। बस यह खयाल कि तुम तकिए को मार रहे हो, पर्याप्त है। बस क्रोध में, गुस्से में हो जाना ही काफी है, अवरोध टूट गया है। यदि तुम किसी की हत्या करना चाहो या तुम किसी के ऊपर क्रोधित होना चाहो, तो तुम इसमें कभी पूरी तरह न हो सकोगे - क्योंकि दूसरे को चोट पहुंचेगी, वह घायल होगा, और तुम एक मनुष्य हो, तुम्हारे पास प्रेम और करुणा भी हैं। इसलिए व्यक्ति अभिव्यक्ति रोक लेता है।
तकिए को पीटो। एक बढ़िया चाकू लो और तकिए को मार डालो। जब तकिया मर जाए, तो उसके शरीर को दफना दो और यह मामला निबटा दो। अचानक तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारे भीतर कुछ टूट गया है। एक चट्टान हटा दी गई है। चीखो, कूदो, दौड़ो। यदि कामवासना उठती है तो इसकी उठने में सहायता 'करो। समाज ने तुमको जो कुछ भी सिखाया है उस सभी को भूल जाओ। अपने भीतर उठ रही कामुकता की परम अनुभूति का आनंद लो। सहयोग करो इसके साथ न तो सिकुड़ो और न ही इसका प्रतिरोध करो, इसके साथ सहयोग करो। शीघ्र ही तुम पाओगे कि कामुकता रूपांतरित हो रही है। जब तालाब भर जाता है, तो इसका पानी किनारे पार करके बाहर की ओर फैल जाता है। उद्वेलित