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ग्रहण कर रहा है। फिर मंदिर, फिर पुजारी, फिर वे विचित्र से तड़क-भड़क वाले लबादे, और पूरा वातावरण, वह इस माहौल को पीने लगता है। यह उसके अस्तित्व का एक भाग बन जाता है। या तो मां के दूध से या राज्य की शिक्षाओं से, लेकिन जब वह अनजान था तभी उसने ये बातें ग्रहण कर ली थीं। तुम ईसाई बन जाते हो, जब तक तुम सजग हो पाते हो तुम पहले से ही एक ईसाई, एक हिंदू एक मुसलमान, एक जैन, एक बौद्ध, बन चुके होते हो, और तुमको इन धार्मिक संस्कारों से मुक्त करना बहुत कठिन है।
पतंजलि का पूरा प्रयास यही है कि तुम्हें कैसे संस्कारों से मुक्त किया जाए, किस भांति तुम्हारी मदद की जाए कि तुम स्वयं को संस्कारों से स्वतंत्र कर सको जो कुछ भी तुमको दिया गया है उस सभी का परित्याग करना पड़ेगा, ताकि पुनः तुम बादलों से पार मुक्त आकाश में आ सको, ताकि तुम पुनः इस छोटे सुरंग नुमा हिंदू मुसलमान, साम्यवादी, यह और वह, होने से बाहर निकल सको कैसे वह आयाम रहित, खुला आकाश तुम्हें उपलब्ध हो सके। कोई भी धर्म, विशेषतः कोई भी संगठित धर्म इसके पक्ष में नहीं है। वे अपनी सुरंगों को सजाते हैं। वे अपनी बातों को लोगों पर थोपते हैं जैसे कि परमात्मा तक पहुंचने के लिए उनका रास्ता ही एक मात्र रास्ता है।
मैंने सुना है, एक व्यक्ति जो प्रोटेस्टेंट था मर गया और स्वर्ग पहुंचा। उसने सेंट पीटर से कहा, इसके पूर्व कि मैं कहीं बस जाऊं मैं स्वर्ग का भ्रमण करना चाहता हूं मैं पूरा स्वर्ग देखना चाहता हूं। सेंट पीटर ने कहा, तुम्हारी जिज्ञासा समझ में आती है, परंतु एक बात तुमको याद रखनी पड़ेगी : मैं तुमको चारों तरफ ले जाऊंगा लेकिन बात मत करना, बिलकुल शांत रहना। और चलना ऐसे कि कोई आवाज न होने पाए। वह प्रोटेस्टेंट थोड़ा सा घबड़ाया, इतना सब कुछ किसलिए? लेकिन वे चल पड़े। जब कभी भी वह कुछ कहना चाहता, सेंट पीटर अपने होंठों पर अंगुली रख लेते और फुसफुसा कर कहते, श555 शांत रहो। जब भ्रमण पूरा हो गया तो उसने पूछा, आखिर मामला क्या है? इतनी शांति किसलिए? पीटर ने उत्तर दिया, यहां पर प्रत्येक विश्वास में जीया करता है। उदाहरण के लिए कैथेलिक विश्वास करते हैं कि केवल वे ही स्वर्ग में हैं; प्रोटेस्टेंट विश्वास करते हैं कि केवल वे ही स्वर्ग में हैं, हिंदुओं का विश्वास है कि केवल वे ही स्वर्ग में हैं मुसलमान विश्वास करते हैं कि केवल वे ही स्वर्ग में हैं। इसलिए यदि वे जान जाएं कि कोई और भी यहां पर है तो वे बहुत नाराज हो जाते हैं। उनके लिए इस बात पर भरोसा कर पाना नामुमकिन है।
पृथ्वी पर लोग सुरंगों में रहते हैं और स्वर्ग में भी।
कोई भी संगठित धर्म पूर्णत: खुले हुए मन के पक्ष में नहीं है। यही कारण है कि कोई भी संगठित धर्म धर्म जरा भी नहीं है, वह राजनीति है।
अभी उस दिन मुझे अमिदा से एक पत्र प्राप्त हुआ। वह एरिका समूह में हुआ करती थी। अब वह यहां आ गई थी, इसलिए एरिकन लोग अत्याधिक क्षुब्ध हैं। उसने संन्यास ले लिया, इसलिए उन्होंने