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छोटी लड़की गर्वपूर्वक खड़ी हो गई और उसने कहा. यदि वे मुझसे दीवानगी भरे सवाल पूछने जा रहे, तो मैं भी उन्हें दीवानगी भरे उत्तर दूंगी - वें मुझे मूर्ख नहीं बना सकते।
इस बात को याद रखो। यदि तुम पूर्ण मौन में उत्तर प्राप्त करना चाहते हो, तो सीखो मौन कैसे हुआ जाए। फिर तुम्हें पूछने की जरूरत न रहेगी, तुम्हें अपने भीतर प्रश्न बनाने की जरूरत भी न पड़ेगी, तुम्हें मेरे पास आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि तब शारीरिक निकटता की जरूरत नहीं रहेगी । तुम जहां कहीं भी हो तुम मेरा उत्तर पाने के योग्य होओगे। और वह उत्तर मेरा या किसी और का नहीं होगा, यह तुम्हारे अपने हृदय का उत्तर होगा।
मुझे तुम्हें उत्तर देने पड़ते हैं क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि प्रश्न कैसे पूछा जाए। मुझे तुम्हें उत्तर देने पड़ते हैं क्योंकि तुम अपने स्वयं के अस्तित्व से उत्तर पाने में अभी समर्थ नहीं हो पाए हो एक बार तुम 'मौन सीख लो, तो तुम आत्यंतिक रूप से समर्थ हो जाओगे बस मौन हो जाओ और सारे प्रश्न खो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि तुम्हें कोई उत्तर मिल जाता है, बस प्रश्न खो जाते है, तुम्हारे पास पूछने के लिए कोई प्रश्न नहीं बचता।
बुद्ध अपने शिष्यों से कहा करते थे, एक वर्ष के लिए बस चुप हो जाओ, मौन हो रहो एक वर्ष बाद जो कुछ भी तुम पूछना चाहो पूछ सकते हो लेकिन एक वर्ष बाद वे नहीं पूछेंगे क्योंकि प्रश्न खो जाते हैं।
तुम जितना अधिक मौन हो जाते हो, उतने ही कम प्रश्न उठते हैं, क्योंकि प्रश्न शोरगुल से भरे मन का भाग हैं। प्रश्न तुम्हारे जीवन से, तुम्हारे अस्तित्व से और तुम्हारे होने से नहीं आ रहे हैं। वे एक विक्षिप्त मन से आ रहे हैं। जब विक्षिप्तता कुछ कम हो जाती है, शोरगुल जरा थम जाता है और मन का यातायात खो जाता है, तो उस यातायात और शोरगुल के साथ प्रश्न भी खो जाते हैं। अचानक वहां मौन हो जाता है।
मौन ही उत्तर है।
प्रश्न:
ओशो, मैं बहुत से स्वप्न देखा करता हूं, किंतु शायद ही कभी आप मेरे सपनों में आते है। अक्सर नेहरू, जयप्रकाश और दिनकर ही दिखाई देते है और वहीं शैतान रेलगाड़ी जो हर बार मेरे सामान लेकर चली जाती है। लेकिन मुझे स्टेशन पर खड़ा छोड़ जाती है।
स्वप्न में आप एक बार मुझे अपनी जीप से एक ऊबड़-खाबड़ नदी तट पर ले गए थे।