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स्वप्न तो बस इसी को इंगित करता है कि तुम्हारे जीवन में क्या खोया हुआ है, जो पहले से ही वहां है वह कभी स्वप्न का भाग नहीं होता। यही कारण है कि सबुद्ध व्यक्ति को स्वप्न नहीं आते, क्योंकि वह किसी भी बात से नहीं चूक रहा है। जो कुछ भी उसने चाहा घट गया है और अब कुछ रहा भी नहीं। उसके वर्तमान को प्रभावित करने के लिए उसके पास न अतीत है और न भविष्य। उसका वर्तमान परिपूर्ण है। जो कुछ भी वह कर रहा है वह पूरी तरह उसका आनंद ले रहा है। वह इतना तृप्त है कि किसी भी प्रकार के परिपूरक स्वप्न की आवश्यकता ही न रही।
तुम्हारे स्वप्न तुम्हारे असंतोष है, तुम्हारे स्वप्न तुम्हारी अतृप्तियां है, तुम्हारे स्वप्न तुम्हारी अधूरी इच्छाएं हैं।
मैत्रेय राजनीतिज्ञ रहे हैं, और उनका मन अभी भी इस राजनीति को साथ रखे हुए है। और इसीलिए 'वही शैतान रेलगाडी जो हर बार मेरा सामान लेकर चली जाती है लेकिन मुझे छोड़ जाती है' यह भी उनके स्वप्नों में अनेक बार आता है, यह बहुत से लोगों के स्वप्नों का हिस्सा है। एक रेलगाड़ी, किसी भांति तुम उस तक पहुंचे, दौड़ते- भागते, किसी प्रकार से तुम प्लेटफार्म तक पहुंच पाए हो और रेलगाड़ी छूट गई। और उनकी परेशानी तो और भी अधिक है, उनका सामान भी रेलगाड़ी में रखा हुआ है और वे प्लेटफार्म पर बिना किसी सामान के अकेले खड़े छोड़ दिए गए हैं। यही तो हुआ है उनके साथ। नेहरू रेलगाड़ी में बैठ कर चले गए, दिनकर रेलगाड़ी में बैठ कर चले गए, जयप्रकाश नारायण रेलगाड़ी में बैठ कर चले गए और वे उनका सामान भी ले गए और वे प्लेटफार्म पर खड़े रह गए हैं खाली हाथ। वे महत्वाकांक्षाएं, राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं अभी भी उनके अचेतन में विदयमान हैं।
इसीलिए उनके स्वप्न में नहीं आ रहा हूं मैं। मैं तो यहां हूं ही। मैं कोई महत्वाकांक्षा नहीं हूं। जब मैं जा चुका होऊंगा तो मैं उनके स्वप्नों में आ सकता हूं-अब उनकी एक और रेलगाड़ी छूट चुकी होगी। एक रेलगाड़ी उनकी छुट गई है, और उन्होंने उसे आत्यंतिक रूप से छोड़ दिया है। अब वापस लौटने का कोई उपाय रहा नहीं, क्योंकि एक खास किस्म की समझ उनमें जाग चुकी है। वे अब वापस नहीं जा सकते वे पुन: राजनीतिज्ञ नहीं हो सकते। वापसी नहीं हो रही है, किंतु अतीत चिपका रह सकता है, और जितना अधिक यह चिपकता है उनकी दूसरी रेलगाड़ी भी छूट सकती है।
और निःसंदेह, 'आप एक बार मुझे अपनी जीप से एक ऊबड़-खाबड़ नदी तट पर ले गए थे।' जीप है, और चारों तरफ एक ऊबड़-खाबड़ नदी तट है-यह बहुत ऊबड़-खाबड़ है। मेरे साथ रहना सदैव खतरे में, असुरक्षा में जीना है। मैं तुम्हें कोई सुरक्षा नहीं देता, वास्तव में मैं तुमसे तुम्हारी सारी सुरक्षाएं छीन लेता हूं। मैं करीब-करीब खाली कर देता हूं-पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं, चिपकने के लिए कुछ भी नहीं। मैं तुम्हें अकेला छोड़ देता हूं। भय उठ खडा होता है।
अब मैत्रेय पूरी तरह अकेले छूट गए है-न धन, न शक्ति, न प्रतिष्ठा, न कोई राजनैतिक स्तर। सब कुछ जा चुका है, वे मात्र एक भिक्ख हैं। मैंने उनको एक भिक्षुक बना दिया है। और वे ऊपर उठ रहे