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के लिए पहली बात है कि चीजों को समस्या की भांति देखने की पुरानी आदत त्याग दो। उनको तुम समस्या बना देते हो।
उदाहरण के लिए, काम। यह समस्या जरा भी नहीं है। यदि यह समस्या है तो तुम किसी भी चीज को समस्या में बदल सकते हो। तुम श्वास लेने को समस्या में बदल सकते हो, एक बार तुम श्वास लेने को समस्या की भांति देख लो, तो तुम सोचना आरंभ कर दोगे कि इससे छुटकारा कैसे पाया जाए। तुम श्वास लेने से भयभीत हो जाओगे। काम समस्या नहीं है। काम एक सरल, शुद्ध ऊर्जा है। किंतु किसी गुरु के साथ रहते हुए तुम संस्कारित हो गए हो, क्योंकि गुरुओं में से करीब-करीब निन्यानबे प्रतिशत काम को समस्या की भांति लेते हैं। वास्तव में वे गुरु ही नहीं हैं। उन्होंने अपने स्वयं के जीवन में कुछ भी हल नहीं किया हुआ है। वे उतनी ही परेशानी में हैं जितनी परेशानी में तुम हो। उनमें उतनी ही विक्षिप्तता है जितनी तुम्हारे भीतर है।
अंतर्दृष्टि वाले व्यक्ति की कोई समस्याएं नहीं होतीं, और अंतर्दृष्टि रखने वाला व्यक्ति कभी किसी अन्य व्यक्ति की समस्याग्रस्त रहने में सहायता नहीं करता है।
यदि तुम्हारे पास समस्या निर्मित करने की यांत्रिक व्यवस्था है, तो मैं तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं कर सकता, लेकिन मैं तुमको इसके आर-पार, इसके शर देख पाने की, अधिक पारदर्शितापूर्वक, अधिक स्पष्टता और समझ के साथ देख लेने के लिए अपनी अंतर्दृष्टि दे सकता हूं।
इसलिए विचार करने योग्य पहली बात यह है कि तुम काम को समस्या क्यों कहते हो? इसमें समस्याकारक क्या है? यदि काम समस्या है, तो भोजन समस्या क्यों नहीं है? यदि काम समस्या है, तो श्वसन समस्या क्यों नहीं है? यदि काम समस्या है, तो क्यों किसी भी बात को समस्या में नहीं बदला जा सकता? तुम्हें तो बस उस ढंग से देखने की आवश्यकता है और यह समस्या बन जाता है।
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में, विभिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न बातों को समस्यामूलक समझा जाता है। यदि तुम फ्रायड के प्रभाव वाले समाज में पले-बढ़े हो, तो काम तो तनिक भी समस्या नहीं होता। तब तो कामुक न होना समस्या बन जाएगा। यह अनेक पाश्चात्यों की समस्या बन चुका है।
कोई पैंसठ वर्ष की स्त्री मेरे पास आई और उसने कहा. 'ओशो, मेरी कामेच्छा मिट रही है। मेरी सहायता कीजिए।' क्योंकि यदि तुम फ्रायड से बहुत अधिक प्रभावित रहे हो तो काम करीब-करीब जीवन के समतुल्य है। यदि कामेच्छा मिट रही है, इसका अर्थ हुआ कि तुम मर रहे हो, तब मृत्यु अति निकट है। इसलिए परम अंत तक, मृत्युशय्या पर भी तुमको कामुक व्यक्ति बने रहना पड़ता है, तुम्हें स्वयं को जबरदस्ती कामुक व्यक्ति बनाए रखना पड़ता है।