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यह विशेष रूप से भारतीयों के लिए बिलकुल नई समस्या है, जो इसको समस्या की भांति सोच नहीं सकते। यदि ऐसा उनके साथ हो जाए तो वे मंदिर जाएंगे और ईश्वर को धन्यवाद देंगे। यदि वे युवा हों तो भी यदि काम खो जाता है, वे अत्याधिक प्रसन्न, आत्यंतिक रूप से प्रसन्न हो जाएंगे। परमात्मा बहुत सहायक रहा है, समस्या का समाधान हो गया है। किंतु ऐसा भी हो सकता है कि समस्या का समाधान नहीं हुआ है, वे बस नपुंसक हो रहे हों।
यह समस्या एक निश्चित दृष्टिकोण के कारण उपजती है। समस्या स्वयं में कोई समस्या नहीं है, यह तुम्हारे दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। यदि तुम पाश्चात्य हो तो एल्कोहल से निर्मित पेय पीना कोई समस्या नहीं है। किसी भी शीतल पेय कोकाकोला या फैंटा की भांति साधारण बात है यह। यदि तुम जर्मन हो तो बीयर, बस पानी है। इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन यदि तुम भारतीय हो तो समस्या उठ खड़ी होती है। कोकाकोला तक समस्या है। गांधीजी तुम्हें कोकाकोला पीने की अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने अपने आश्रम में चाय पर रोक लगा रखी थी। चाय! यह उनके लिए समस्या बन गई, क्योंकि इसमें कुछ मात्रामें कैफीन होती है। बौधों के लिए चाय कभी समस्या नहीं थी। जापान में, चीन में यह करीब-करीब एक धार्मिक अनुष्ठान की भांति है।
एक बौद्ध भिक्षु अपना दैनिक जीवन चाय से आरंभ करता है। उषाकाल में, इसके पूर्व कि वह ध्यान करने जाए, वह चाय पीता है। ध्यान कर लेने के उपरांत वह चाय पीता है, और वह इसे बहुत धार्मिक ढंग से गरिमापूर्वक और अहोभाव पूर्वक पीता है। इसे कभी एक समस्या के रूप में नहीं सोचा गया; वस्तुत: बौदधों ने ही इसकी खोज की थी। ऐतिहासिक रूप से यह बोधिधर्म से संबंधित है।
धर्म को चाय का अन्वेषक समझा जाता है। वह पर्वत उपत्यका में रहा करता था। उस पर्वत का नाम टा था, और क्योंकि चाय वहां पहली बार खोजी गई थी, यही कारण है कि टा, टी, चा, चाय-वे सभी 'टा' से जन्में हुए शब्द हैं। और बोधिधर्म ने इसे क्यों खोजा, और उसने इसे कैसे खोजा?
वह परम जागरूकता की एक अवस्था उपलब्ध करने का प्रयास कर रहा था। यह कठिन है। तुम भोजन के बिना कई दिन जीवित रह सकते हुए, लेकिन नींद के बिना? और वह जरा सी नींद को भी नहीं आने दे रहा था। एक समय, सात आठ, दिन बाद, अचानक उसे अनुभव हुआ कि नींद आ रही है। उसने अपनी आंख की पलकें उखाड़ दी और उनको फेंक दिया, जिससे कि अब जरा भी समस्या न रहे। ऐसा कहा जाता है कि वे पलकें भूमि,, पर गिरी, वे चाय के रूप में अंकुरित हो गईं। यही कारण है कि चाय जागरूकता में सहायक होती है; यदि तुम रात्रि में बहुत अधिक चाय पी लो तो तुम सोने में समर्थ नहीं हो पाओगे। और क्योंकि सारा बौद्ध मन यही है कि कैसे वह बिंदु उपलब्ध हो जहां नींद बाधा न डाले और तुम पूर्णत: जागरूक रह सको, निःसंदेह चाय करीब-करीब एक पवित्र वस्तु, पवित्रों में पवित्रतम हो गई है।