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स्वप्न देखना एक गृहकार्य है और मनोविश्लेषक तुम्हारे स्वप्नों पर जीता है। वह उनका विश्लेषण किए चला जाता है। किंतु यह कुछ असंगत बात है। तुम अपने स्वप्नों का विश्लेषण स्वयं नहीं कर सकते कोई और इसे कैसे कर सकता है? क्योंकि मनोवैज्ञानिक समय निजी है, इसलिए तुम्हारे स्वप्नों को तुमसे बेहतर और कोई समझ ही नहीं सकता है। सपने तुम्हारे हैं, कोई दूसरा उनको किस प्रकार समझ सकता है? उसकी व्याख्याएं झूठ होने वाली हैं। उसकी व्याख्याएं उसके दवारा की जाएंगी। जब कोई फ्रायड तुम्हारे स्वप्न का विश्लेषण करता है, तो उसकी व्याख्या भिन्न होगी। जब जुग उसी स्वप्न का विश्लेषण करता है, तो उसकी व्याख्या अलग होगी। जब एडलर उसी स्वप्न का विश्लेषण करता है, तो उसकी व्याख्या और किस्म की होती है। अत: इसके बारे में क्या सोचा जाना चाहिए? तुमने एक स्वप्न देखा है और तीन महान मनोविश्लेषकों ने तीन अलग ढंगों से इसको समझाया।
फ्रायड हर बात को कामवासना की ओर मोड़ देता है। चाहे तुम जो स्वप्न देखो, कोई अंतर नहीं पड़ता। वह उसे कामवासना से संबद्ध करने का उपाय खोज लेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि वह कामवासना से ग्रसित था। वह एक महान अग्रदूत था, उसने एक बड़ा द्वार खोल दिया, लेकिन वह भयग्रस्त था, और वह कामवासना से डरा हआ था, और वह दसरी कई चीजों से भी आतंकित था। वह इतना भयग्रस्त था कि उसको सड़क पार करने में भय लगता था, यह उसके बड़े भयों में से एक था। अब तुम यह नहीं सोच सकते बद्ध सड़क पार करने से भयभीत हों। यह आदमी स्वयं ही रुग्ण है। वह लोगों के साथ बातचीत करने से इतना घबड़ाता था, तभी तो उसने मनोविश्लेषण निर्मित किया। मनोविश्लेषण में मनोविश्लेषक एक पर्दे के पीछे बैठता है और रोगी एक कोच पर लेटता है और बोलता रहता है और मनोविश्लेषक केवल सनता है-कोई संवाद नहीं। वह संवाद से भयभीत था। व्यक्तिगत मुलाकातों में, आमने-सामने की बातचीत में वह सदा असहज रहता था। अब उसका सारा मन उसकी व्याख्या में समा गया है। यह स्वाभाविक है, इसे ऐसे ही होना चाहिए।
जुंग हर बात को, प्रत्येक चीज को धर्म पर ले आता है। स्वप्न में तुम चाहे कुछ भी देखो, वह इसकी व्याख्य इस भाति करेगा कि यह धार्मिक स्वप्न बन जाएगा। वही स्वप्न फ्रायड के साथ कामुक हो जाता है, जुग के साथ यह धार्मिक हो जाता है। एडलर के साथ यह राजनीति बन जाता है। हर बात महत्वाकांक्षा है। और प्रत्येक व्यक्ति हीनता की ग्रंथि से पीड़ित है। और प्रत्येक व्यक्ति और शक्ति प्राप्त करने के लिए-शक्ति की आकांक्षा हेतु प्रयासरत है। और अब तो सारे संसार में हजारों मनोविश्लेषक हैं जो विभिन्न विचारधाराओं के हैं। जितनी विविध विचारधाराएं ईसाइयत में हैं उतनी ही हैं। बहुत से वाद हैं और हर मनोविश्लेषक अपना स्वयं का वाद आरंभ कर देता है। और किसी को रोगी की फिकर नहीं कि यह उसका स्वप्न है।
मनोविश्लेषकों की समस्याएं उनके विश्लेषणों और व्याख्याओं में समा जाती हैं। सहायता करने का यह कोई ढंग नहीं है। वस्तुत: यह तो चीजों को और अधिक जटिल बना देने वाला है। एक बेहतर समाज तुम्हें सिखाएगा कि अपने स्वप्न का किस भांति विश्लेषण किया जाए, अपने स्वयं के स्वप्नों