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प्रश्न:
ओशो, आप बेहतरीन कातिल है। आपके साथ एक साल गुजरा है, और धीमे-धीमें आपका जहर मेरे मन में काम कर रहा है। जब कभी भी कुरूप और गंदा दिखने का बहाना करता हूं, सभी कुछ तकलीफ देह हो जाता है। लेकिन अब इस बेदह ऊहापोह में दिव्यता के अंदर आने के लिए एक छोटा सा दरवाजा कैसे पाऊं?
इसकी चिंता दिव्यता को करने दो। तुम चिंता क्यों करते हो? तुम तो बस स्वयं हो जाओ। वह
अपना रास्ता खोज लेगी।
और तुम सही हो, मैं कातिल हूं लगभग एक हत्यारा।
एक अस्पताल में कोई व्यक्ति मर रहा था, और उसने डाक्टर से कहा : 'डाक्टर साहब मुझे बहुत अधिक चिंता लगी रहती है, ऐसा लगता जैसे कि मैं मर रहा हूं।
डाक्टर ने कहा. चिंता मत करो, इसको मुझ पर छोड़ दो।
यही तो मैं तुमसे कहता हूं चिंता मत करो, इसको मुझ पर छोड़ दो। मैं तुमको मार दूंगा। क्योंकि तुम्हें नई स्वतंत्रता, जीवन को एक नई शैली देने का यही एक मात्र उपाय है। मैं तुम्हें सूली देता हूं ताकि तुम्हारा पुनर्जन्म हो सके।
प्रश्न:
आप सेक्स के बारे में सी बात रहे हो। जो अच्छी बात है, क्योंकि एक लंबे समय से इसको अंधेरे में रखा गया था। जो भी हो मैंने व्यक्तिगत रूप से आपको कभी समलैंगिकता के बारे में बोलते नहीं सुना है। केवल बहुत ही संक्षेप में और वस्तुत: आप इसको निम्नतम पर रखते रहे है। कृपया क्या आप इसके बारे में बात करेंगे, क्योंकि 'यह विकृत कृत्य' जैसा कि आप इसे कहते है, चाहे जो भी इसका कारण हो, समलैंगिकता संसार में थी और है। क्या चंद्र पक्ष का सूर्य पक्ष से संगम नहीं हो सकता, फिर शरीर चाहे जो हो? क्या तंत्र केवल विषमलिंगी लोगों के लिए ही है? क्या लोगों को अपनी समलैंगिक प्रवृतियों का दमन करना चाहिए?