________________
"इसलिए मैं क्या खा रहा हूं मैं क्या कर रहा हूं चारों ओर क्या घट रहा है, किसी से मुझ पर कोई अंतर नहीं पड़ता।" तुम असंवेदनशील और मूढ़ होते जा रहे हो। यह मत समझो कि यह धर्म है। यह बस धीमा आत्मघात है। तुम अपने अस्तित्व को विषाक्त कर रहे हो। और अधिक होशपूर्ण हो जाओ,
और अधिक जागरूक हो जाओ, और अधिक संवेदनशील हो जाओ। क्योंकि यदि तुम संवेदनशील नहीं हो, जीवन तुम्हारे पास से होकर गुजरता चला जाएगा और तुम इसको जी न पाओगे, तुम अस्पर्शित रहोगे। जीवन तुम्हारे ऊपर बरसता चला जाएगा और तुम बंद रहोगे, तुम इसके प्रति खुले नहीं होगे। परमात्मा तुमको देता चला जाएगा, लेकिन तुम नहीं लोगे। अधिक संवेदनशील, अधिक प्रत्युत्तरपूर्ण बनो। वीणा के तार जैसे होओ। हूं.....कोई बस इसे छूता भर है, और प्रतिसंवेदना होती है। तार जीवित है। ढीले मत रहो, अन्यथा वहीं प्रतिसंवेदना नहीं होगी। निःसंदेह बहुत तन मत जाओ नहीं तो तुम टूट जाओगे।
धर्म की पूरी कला यही है कैसे संतुलित हुआ जाए? कैसे असंयत न हुआ जाए? वीणा के तारों को सम्यक तनाव में, परिपूर्ण साम्यता में, पूर्ण संतुलन में-न इस ओर, न ही उस ओर, बस ठीक मध्य मे, ठीक-ठीक बीच में रहना चाहिए। तुम इसे छुओ-अभी तुम इसे छू भी न पाए हो-और यह प्रत्युत्तर देता है।
लोग कहते हैं कि यदि एक वीणा के स्वरों को एक गुरु सही रूप से उचित ढंग से बिठा दे और तुम इसको कमरे के एक कोने में रखो, अब तुम एक दूसरी वीणा बजाओ, तो कोने में रखी यह वीणा उस वीणा के संगीत का प्रत्युत्तर देना आरंभ कर देती है। -यह प्रत्युत्तर देती है, क्योंकि झंकार, कंपन, स्पंदन इस तक पहुंचते हैं। जब एक वीणा से अत्यधिक सुंदर कंपन उत्सर्जित होने लगते हैं, इनका प्रसार होता है, ये सारे कमरे को भर देते हैं, और दूसरी वीणा पूर्णत: तैयार, न अधिक ढीली, न अधिक कसी, बस मध्य में, वहां प्रतीक्षारत है, तत्क्षण वे सूक्ष्म कंपन इससे टकराते हैं, बिना किसी इंसानी हाथ के स्पर्श के यह प्रत्युत्तर देना आरंभ कर देती है, यह जीवंत हो उठती है। जीने का यही ढंग है।
ध्यान तुमको बस संतुलित, मध्य में, विर्भात, शांत, आनंदित करने के लिए है, ताकि जब जीवन तुम्हारे पास आता है... और यह हर क्षण आ रहा है। इसकी लाखों भेंटें हैं, तुम उनसे चूकते जाते हो, क्योंकि तुम तैयार नहीं हो। तुम उस बहरे आदमी के समान हो जो बैठा हो और कोई वीणा बजा रहा है। तुम इससे चूकते रहते हो।
मैंने एक महान संगीतकार के बारे में सुना है, जिसने एक अन्य महान संगीतज्ञ तानसेन के बारे में सुना कि जब तानसेन अपनी वीणा बजाता है, तो उसे सुनने पशु भी एकत्रित हो जाते हैं। वह इसकी सत्यता को जानना चाहता था। वह जंगल में चला गया और उसने अपनी वीणा बजाना आरंभ कर दिया, धीरे- धीरे पशुओं ने आना आरंभ कर दिया। बहुत भीड़ एकत्रित हो गई-हाथी, जेब्रा, चीता, तेंदुआ, लोमडिया, भेडिए-हर प्रकार के पश् छोटे और बड़े, और वे ठगे से रह गए, सम्मोहित हो गए। और तभी अचानक एक घड़ियाल आया, और संगीतकार पर झपटा और उसको एक ही बार में समूचा