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मनोचिकित्सक यह देख कर बहत हैरान हआ कि उसकी रोगी युवा महिला उसके कार्यालय के बाहर खड़ी है और बेहद परेशान दीख रही है। उसे अभी उसकी चिकित्सा करते हुए आधा घंटा ही हुआ था। उसने पूछा. क्या मामला है? वह बोली ओह, मुझे पता नहीं है कि मैं आ रही हूं या जा रही हूं। मनोचिकित्सक ने कहा बिलकुल ठीक यही बात है, इसीलिए तुम मुझसे मिलने आई हो।
ओह। वह बोली : तब आप कौन हैं?
मैं तुम्हारा मूर्ख चिकित्सक हूं झल्ला कर वह बोला।
सीमा रेखा का एक संसार निर्मित हो जाता है। यदि तुम क्रमागत संसार से संपर्क खो देते हो और तुम्हारा संपर्क सार्वभौम, परम से नहीं जुड़ पाता, तो अचानक तुम नहीं जान पाते कि तुम आ रहे हो
रहे हो:। सब कछ संदेहास्पद हो जाता है, हर बात संशय उत्पन्न करती है, तम स्वयं पर भरोसा नहीं कर सकते, तुम्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं आता, तुम किसी पर भरोसा नहीं कर पाते। तुम बंद हो जाते हो, सीमित हो जाते हो। तुम झरोखा विहीन अस्तित्व, एक मोनैड, एक इकाई बन जाते हो। यही तो नरक है। तुम स्वयं से बाहर नहीं आ सकते, तुम पंगु हो गए हो।
स्मरण रखना, ध्यानी पागल के संसार से होशपूर्वक गुजरता है-होशपूर्वक। और होशपूर्वक गुजरना शुभ है, क्योंकि यदि तुम होशपूर्वक नहीं गुजरोगे तो इस बात की पूरी संभावना है कि तुम अचेतन में इसके शिकार हो जाओ। इसमें जबरदस्ती धकेले जाने की तुलना में इससे जाग्रत, होशपूर्वक होकर गुजरना श्रेयस्कर है। यदि जीवन तुम्हें इसमें धकेल दे तो तुम इससे बाहर निकलने में समर्थ न हो सकोगे। यह बहुत ही दुष्कर है।
और मनोचिकित्सक तुम्हारी केवल क्रमागत संसार में वापस लौटने में सहायता कर सकता है। सदगुरु और मनोचिकित्सक में यही अंतर है। मनोचिकित्सक उस व्यक्ति को जो 'मनोवैज्ञानिक' में खो गया है वापस क्रमागत में-आघात चिकित्सा से, बिजली के झटकों से, इंसुलिन के झटकों सें-क्योंकि तुम अत्याधिक आघातग्रस्त हो वापस ले आता है। अचानक तुम्हारा स्वप्न तोड़ दिया जाता है। तुम थोड़े से चौकन्ने हो जाते हो, तुम क्रमागत संसार में वापस लौट आते हो।
सदगुरु, यदि तुम मनोवैज्ञानिक समय में खो चुके हो, तो तुम्हें और पीछे ले जाकर तुम्हें सार्वभौम में ले जाता है। अब तुम कभी क्रमागत समय के संसार का हिस्सा नहीं बन पाओगे, बल्कि तुम सार्वभौम के हिस्से हो जाओगे।
'इससे वर्ग, चरित्र या स्थान से न पहचाने जा सकने वाली समान वस्तुओं में विभेद की योग्यता आती है।'
एक बार तुम परम को जान लो तो तुम्हारे भीतर एक बिलकुल भिन्न प्रकार के शान का उदय होता है। अभी तो तुम वस्तुओं को केवल बाहर से जानते हों-कोई आता है तुम कपड़ों को देखते हो और