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अगर तुम जैन तीर्थंकर को देखो, तो तुम्हें बहुत लंबे कान दिखाई पड़ेंगे जो करीब-करीब उनके कंधों को छते हैं। अब जैन कहते हैं कि सारे तीर्थंकरों के कान लंबे थे। और ऐसे मढ़ हैं जो सोचते हैं कि महावीर के कान वास्तव में इतने अधिक लंबे थे।
मुझे एक जैनी, आचार्य तुलसी ने अपने एक सम्मेलन में निमंत्रित किया था, उनके कान बहुत लंबे हैं, इसलिए उनका एक शिष्य मेरे पास आया और बोला, 'आचार्य तुलसी जी महाराज को देखिए, उनके कान कितने लंबे हैं। यह महान सदगुरु होने का प्रतीक है। जल्दी ही अपने किसी 'अगले जन्म में वे तीर्थंकर होने वाले हैं।' संयोगवश या किसी इत्तेफाक से एक गधा उधर से गुजरा, अत: मैंने उस शिष्य से कहा : 'आचार्य गधे जी महाराज को देखिए। वे पहले से ही तीर्थंकर हैं।' वह शिष्य उस बात से इतना क्रोधित हो गया, वह मेरे पास कभी नहीं आया।
लंबे कान मात्र इस बात का प्रतीक हैं कि ये लोग सुनने में समर्थ हैं, बस यही बात है। वे ध्वनि को, ध्वनि-विहीन ध्वनि को, एक हाथ की ताली की ध्वनि को सुनने में समर्थ थे। वे सत्य को सुनने में समर्थ थे। ये प्रतिमाएं मात्र प्रतीकात्मक हैं, ऐसा नहीं है कि वे किसी वास्तविक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसी गलत ढंग की व्याख्या मूढ़तापूर्ण है। पुराण-कथा प्रतीकात्मक हैं। ऐसा कहा जाता है कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। अब भीतर की शांति की एक अवस्था का नाम अयोध्या है, इसका अयोध्या नाम के नगर से कुछ भी लेना-देना नहीं है। नगर का नाम अंतस की अयोध्या जैसी दशा एक बहुत शांतिपूर्ण, मौन, आनंदित अवस्था के प्रतिनिधि के रूप में रखा गया है। निःसंदेह उस अवस्था से राम को जन्म लेना ही होगा।
जीसस का कंआरी माता से जन्म का यही अर्थ है। ऐसा नहीं है कि वास्तव में उनका जन्म कुंआरी मेरी से हुआ हो, नहीं, बल्कि अस्तित्व की शुद्धता कुंआरेपन, भोलेपन और अविकृत पवित्रता से ही उनका जन्म हुआ था। यही उनका असली गर्भ था
ये प्रतीकात्मक बातें हैं, ये पुराण कथाएं हैं। वे ऐतिहासिक नहीं हैं।
इतिहासकार अनावश्यक विवरण, बकवास एकत्रित करते रहते हैं। तुम जरा इतिहास की किसी पुस्तक में देखो। तुम आश्चर्यचकित हो जाओगे। इतने सारे लोग इतना मूर्खतापूर्ण कार्य क्यों कर रहे हैं? तिथियां, तिथियां और तिथियां और नाम, नाम और नाम और वे चलते चले जाते हैं। और हजारों लोग अपना सारा जीवन बरबाद कर देते है और वे इसे शोध कहते हैं। और फिर पत्रकार हैं, संपादक, समाचार पत्र के कार्यकर्ता हैं, वे सभी क्रमागत समय में जीते हैं। वे बस संसार की अनावश्यक बातों को समाचार लिखने के लिए खोजते रहते हैं
सत्य कभी समाचार नहीं बनता, क्योंकि यह सदैव वहां है। यह घटित नहीं होता, यह पहले से ही घट चुका है। असत्य समाचार है।