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आया हूं जो यह भी नहीं जानती कि समय कैसे देखा जाए, और उनके पास घड़ियां हैं, सुंदर सोने की घड़ियां-वे उन पर धन खर्च सकती हैं।
बच्चा एक बिलकुल ही भिन्न संसार में जीता है। बच्चे के पास अपना स्वयं का मनोवैज्ञानिक समय है, पूरी तरह से बिना जल्दबाजी का, करीब-करीब स्वप्न में। वह तुम्हें नहीं समझ सकता, तुम उसको नहीं समझ सकते। तुम बहुत दूर हो, जोड्ने का कोई उपाय भी नहीं है। जब एक वृद्ध व्यक्ति किसी बच्चे से बात कर रहा होता है, तो वह जैसे दूसरे ग्रह से बोल रहा होता है, यह बात बच्चे तक कभी
| बच्चा देख नहीं पाता कि इतनी अधिक जल्दबाजी क्यों, किसलिए?
नहीं
मनोवैज्ञानिक समय नितांत वैयक्तिक है। इसीलिए क्रमागत समय महत्वपूर्ण हो गया है, वरना कहां मिला जाए, कैसे कार्य किया जाए किस भांति कुशल हुआ जाए? यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी अनुभूति के अनुसार कार्यालय में आता है तो कार्यालय चला पाना असंभव है। यदि प्रत्येक व्यक्ति उसके अपने समय पर स्टेशन आता है तो रेलगाड़ी कभी न जाएगी। सभी को सुविधा देने वाला कुछ निश्चित करना पड़ता है।
1 पराण
क्रमागत समय इतिहास है, और मनोवैज्ञानिक समय पुराण है। इतिहास और पुराण के मध्य यही अंतर है। पश्चिम में इतिहास लिखा गया और परब
पूछो कृष्ण का जन्म कब हुआ, बिलकुल सही-सही दिनांक, कहीं से कोई उत्तर नहीं आएगा। और इतिहासकारों के लिए यह सिद्ध करना आसान है कि यदि तुम यह नहीं सिद्ध कर सकते ऐतिहासिक रूप से कि किस तारीख को, कितने बजे, किस स्थान पर, कृष्ण का जन्म हुआ था–यदि तुम वह स्थान और समय जहां कृष्ण जन्म की घटना घटी थी न दिखा सको तो यह संदेहास्पद है कि कृष्ण का जन्म कभी हआ भी था या नहीं।
पूरब ने कभी यह चिंता नहीं की। पूरब इसकी सारी असंगतता पर हंसता है। कृष्ण के जन्म से ऐतिहासिक समय का क्या लेना-देना है? हमारे पास कोई अभिलेख नहीं है। या हमारे पास अनेक अभिलेख हैं जो विरोधाभासी हैं, एक-दूसरे का खंडन कर रहे हैं।
लेकिन देखो, मेरा जन्म ग्यारह दिसंबर को हआ था। यदि यह सिद्ध कर दिया जाए कि ग्यारह दिसंबर को मैं नहीं जन्मा था, क्या यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण होगा कि मैं कभी पैदा ही नहीं हुआ था? पूरब में कोई अपना जन्म-दिन भी याद नहीं रखता। अभी उसी दिन विवेक अपने पिता के जन्म-दिन के बारे में चिंतित थी। शायद यह सत्ताइस हो, या कोई अन्य दिन, और वह चिंतित थी, यदि वह लिखती है और उनसे पूछती है तो उसके माता-पिता अपमान अनुभव करेंगे। और मैंने उसको बताया कि मुझे अपनी मां का जन्म-दिन, अपने पिता का जन्म-दिन नहीं पता है, और मैं तो यह भी नहीं जानता कि उन्हें स्वयं पता है भी या नहीं। किंतु इससे यह कदापि सिद्ध नहीं हो सकता कि वे कभी थे ही नहीं या उनका जन्म ही नहीं हुआ।