________________
प्रश्न:
शरीर और-और संवेदनशील होता जा रहा है। यह और तेज गति से स्पंदित होता प्रतीत होता है। जितना अधिक चेतना और बोध पर कार्य होता है, सचेतन बोध होता जाता है। पूर्व की ध्यान की अवस्थाओं या स्थितियों से ध्यान की न तुलना हो पा रही है। न पहचान बन रही है। शोर और सांसारिक ऊहापोह के मध्य में ग्रहणशील, निष्क्रिय ध्यान के लिए कम समय और अवकाश और शांत परिस्थितियां मिल पा रही है। फिर भी कुछ घट रहा है। तार्किक समझ के क्षीण होने की पृष्ठभूमि में भी आपके प्रति अगाध श्रद्धा है। यदि आप चाहें तो कृपया समझाएं वास्तव में क्या घटित हो रहा है? और स्पष्ट: उपद्रव की स्थितयों के मध्य गहरे और गहरे जाना कैसे संभव हो सकता है।
पहली बात, और सर्वाधिक आधारभूत बातों में से एक बात सदैव याद रखनी है कि व्यक्ति का
पुनर्जन्म अराजकता में ही होता है। और कोई अन्य उपाय है भी नहीं। यदि तुम दुबारा जन्म पाना चाहते हो, तुम्हें परिपूर्ण अव्यवस्था से होकर गुजरना पड़ेगा। क्योंकि तुम्हारे पुराने व्यक्तित्व को छिन्न-भिन्न करना पड़ेगा। तुम टूट कर बिखर जाओगे। तुमने अपने बारे में जो कुछ भी विश्वास किया था वह धीरे- धीरे खोने लगेगा। वह सब जिससे तुमने अपना तादात्म्य किया हुआ था, मंद, धुंधला हो जाएगा। वह ढांचा जो समाज ने तुम्हें दिया हुआ है, वह चरित्र जो समाज ने तुम्हारे ऊपर थोप दिया था, खंड-खंड होकर गिर पड़ेगा। पुन: तुम बिना चरित्र के खड़े हो जाओगे जैसे कि तुम अपने जन्म के समय पहले दिन थे।
सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाएगा, और उस अराजकता में से, उस शून्यता में से तुम्हारा पुनर्जन्म होगा। इसीलिए मैं बार-बार कहता हूं कि धर्म बड़ी हिम्मत की बात है। यह मृत्यु है, एक विराट मौत, लगभग आत्महत्या, स्वैच्छिक रूप से तुम मर जाते हो। और तुम नहीं जानते कि क्या होने जा रहा है, क्योंकि तुम यह जान भी कैसे पाओगे कि क्या होने जा रहा है? तुम तो मृत हो, इसलिए श्रद्धा की आवश्यकता होती है।
इसीलिए साथ में, सतत रूप से, अराजकता के साथ ही साथ मेरे प्रति एक श्रद्धा विकसित हो रही है, फिर भयभीत होने की कोई आवश्यकता न रही। श्रद्धा सम्हाल ही लेगी। यदि साथ में श्रद्धा इसके साथ ही साथ न विकसित हो रही होती, तब खतरा हो सकता है, तब व्यक्ति विक्षिप्त हो सकता है। अत: वे लोग जिनमें श्रद्धा नहीं है, उनको वास्तव में ध्यान में नहीं उतरना चाहिए। यदि वे ध्यान में उतरेंगे, वे मरने लगेंगे, और उनको खड़े हो पाने के लिए कोई भूमि, कोई सहारा देने वाला माहौल नहीं मिलेगा।