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अनेक लोग मेरे पास आते हैं और मुझसे पूछते हैं, 'यदि हम संन्यास न लें तो क्या आप हमारी सहायता नहीं करेंगे?' मैं तुम्हारी सहायता हेतु तैयार रहूंगा, किंतु तुम इसे लेने के लिए तैयार नहीं होओगे। क्योंकि यह केवल मेरे देने का प्रश्न नहीं है, यह तुम्हारे लेने का भी प्रश्न है। मैं उड़ेल रहा होऊंगा, लेकिन यदि श्रद्धा नहीं है तो तुम इसको ग्रहण नहीं कर पाओगे। और जब कोई श्रद्धा नहीं तो इसको तम पर उड़ेलने का कोई औचित्य भी नहीं है। तम जितना ग्रहणशील होगे उतनी मात्रा के ही ग्रहण करोगे। संन्यास तुम्हारी गहरी श्रद्धा का प्रतीक भर है, इसे दर्शाता है कि अब तुम मेरे साथ जा रहे हो-जब सारा तर्क कहे मत जाओ, तब भी, जब तुम्हारा मन प्रतिरोध करे और कहे, यह तो खतरनाक है, तुम असुरक्षा के संसार में जा रहे हो, तब भी। जब तुम्हारा मन तुम्हें, तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे रंग-ढंग को बचाने का प्रयास करें, तब भी, यदि तुम मेरे साथ जाने को तैयार हो, तो तुम्हारे भीतर श्रद्धा है।
श्रद्धा कोई भावनामात्र नहीं है; यह भावुक होना नहीं है। यदि तुम सोचते हो कि यह केवल भावुक लोगों के लिए है, तो तुम गलत हो। गहरी भावुकता में तुम कह सकते हो, मुझको श्रद्धा है, लेकिन यह कोई बहुत सहायक नहीं होने जा रहा है, क्योंकि जब सभी कुछ खो रहा होगा, तब जो पहली चीज खोएगी वह तम्हारी श्रद्धा है। यह बहुत कमजोर, नपुंसक है। श्रद्धा को इतना गहरा और ठोस चाहिए कि यह भावुकता जैसी न हो, यह कोई भावदशा नहीं है, यह तुम्हारे भीतर का कुछ ऐसा स्थायी भाव है, कि चाहे जो कुछ भी हो, कम से कम तुम श्रद्धा नहीं खोओगे।
यही कारण है कि मैं तुमसे छोटी चीजें करने के लिए कहता हूं। वे अर्थपूर्ण नहीं दिखाई पड़ती हैं। मैं गैरिक वस्त्र पर जोर देता हूं। कभी-कभी तुम सोचते होगे क्यों? इसमें क्या बात है? क्या मैं गैरिक वस्त्रों के बिना ध्यान नहीं कर सकता? तुम ध्यान कर सकते हो; यह बात जरा भी नहीं है। मैं तुमसे कुछ ऐसा करवा रहा हं जो तर्कयुक्त नहीं है। गैरिक वस्त्रों के लिए कोई कारण नहीं है, इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। कोई व्यक्ति किसी भी रंग के कपड़े पहन कर ध्यान कर सकता है और शान को उपलब्ध हो सकता है। मैं तुमको कुछ तर्कहीन बातें परीक्षण की भांति दे रहा हूं कि तुम मेरे साथ चलने को तैयार हो। मैं तुमको मूर्ख बना देने के लिए तुम्हारे गले में माला डाल देता हूं जिससे तुम संसार में मूर्ख की भांति जाओ। लोग तुम्हारे ऊपर हंसेंगे, वे सोचेंगे कि तुम पागल हो गए हो। यही तो मैं चाहता हूं क्योंकि यदि तुम मेरे साथ तब भी चल सके, जब कि मैं तुम्हें लगभग पागल बनाए दे रहा हूं तो ही मुझे पता लगता है कि जब वास्तविक संकट आएगा तुम श्रद्धावान रहोगे।
तुम्हारे चारों ओर ये संकट कृत्रिम रूप से खड़े किए गए हैं। वे बिना किसी कारण के आत्यंतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। उनकी महत्ता तर्क से गहरी है। सभी सदगुरुओं ने यह किया है।
जब इब्राहीम, एक सूफी सदगुरु अपने सदगुरु के पास दीक्षा के लिए आया, इब्राहीम एक सुलान था, और सदगुरु ने उसको देखा और उसने कहा : अपने वस्त्र त्याग दो, मेरा जूता ले लो और नंगे होकर बाजार में जाओ और मेरे जूते को अपने सर पर मारो। उसके पुराने शिष्यगण, वे लोग जो चारों ओर