________________
लेकिन वे कहने लगे, यह एक अच्छी चीज है। और कौन जानता है? धीरे- धीरे मैं पूरी साइकिल एकत्रित कर सकूं। और इसमें गलत भी क्या है? और मैंने इसको चुराया नहीं है, कोई इसको फेंक गया
था।
इस भांति वे चीजें एकत्रित करते चले गए-व्यर्थ की वस्तुएं - लेकिन वे सदैव भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं किसी दिन ये चीजें उपयोगी हो जाएंगी; किसी दिन उनकी जरूरत पड़ सकती हैं। कौन जाने?
तुम अपने घर में ऐसा नहीं कर रहे होओगे, लेकिन तुम सभी अपने हृदय में यही करते हो। यदि तुम अपने हृदय में, अपने मन में उतर कर देखो, तुम्हें यह कबाड़खाने जैसा लगेगा। तुमने कभी इसे साफ नहीं किया है। तुम इसमें कचरा भरते जाते हो, और फिर तुम भारी हो जाते हो, और तब तुम बोझिलता अनुभव करते हो, और तब तुम उपद्रव में फंसा हुआ अनुभव करते हो। और फिर आंतरिक कुरूपता का जन्म होता है।
लेकिन संताप के आधार को समझने का प्रयास करो। यह भविष्य में कहीं और रहने के विचार में निहित है। यदि तुम्हें अभी और यहीं रहना हो तो तुम कभी कृपणतापूर्वक नहीं जी सकते? क्योंकि तुम बांट सकते हो। कोई भी चीज किसलिए एकत्रित की जाए ? संचय किस लिए? ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है, कल हो ही, यह नहीं भी हो सकता है। बांटा क्यों न जाए? आनंदित क्यों न हुआ जाए? इसी क्षण जीवन तुम्हारे भीतर खिल रहा है। इसका आनंद लो, इसे बांटो क्योंकि इसको बांटने से यह सघन हो जाता है बांटने से, यह और अधिक जीवंत हो जाता है बांटने से इसकी वृद्धि होती है और विकास होता है।
अतः सारी बात यह समझ लेना है कि भविष्य नहीं है। भविष्य को महत्वाकांक्षी मन द्वारा निर्मित किया जाता हैं। भविष्य समय का हिस्सा नहीं है । यह महत्वाकांक्षा का भाग है। क्योंकि महत्वाकांक्षा को गति करने के लिए स्थान की आवश्यकता होती है। तुम महत्वाकांक्षा को अभी तृप्त नहीं कर सकते। तुम जीवन को अभी और यहीं परितृप्त कर सकते हो, लेकिन महत्वाकांक्षा को नहीं। महत्वाकांक्षा जीवन के विपरीत है, जीवन विरोधी है।
जरा स्वयं को और दूसरों को देखो। लोग तैयारी कर रहे हैं, किसी दिन वे जीना आरंभ करेंगे। वह दिन कभी नहीं आता। वे करते जाते हैं तैयारी और वे मर जाते हैं। यह कभी नहीं आएगा क्योंकि यदि तुम तैयारियों में बहुत अधिक संलग्न रहे तो, वह एक लगाव बन जाएगा। तुम बस तैयार होंगे, तैयारी करोगे और तैयारी करते चले जाओगे। यह इसी भांति है कि कोई व्यक्ति भविष्य के किसी उपयोग के लिए भोज्य पदार्थों का संचय करता चला जाए और भूखा रहता रहे, भुखमरी का शिकार हो जाए, और मरने लगे। यही तो है जो लाखों व्यक्तियों के साथ घट रहा है। वे बहुत अधिक सामान से घिरे हुए, जिसका उपयोग किया जा सकता था, मर जाते हैं। वे सुदरतापूर्वक जी सकते थे।