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लंदन हास्पिटल केर 'चिकित्सकों ने एक नवागत डाक्टर को सारा अस्पताल दिखाया। उसने फाइलिंग की व्यवस्था को देखा और उनके दवारा अपनाई गई संकेताक्षर व्यवस्था के अच्छे विचार से प्रभावित हआ–डिप्थीरिया के लिए डी, मीजिल्स के लिए एम, टधूबर क्यूलोसिस के लिए टी बी, और इसी प्रकार से और सब। सभी बीमारियां पूरी तरह से नियंत्रण में थी सिवाय एक के जिसका संकेताक्षर था-जी. ओ के।
मैंने देखा है कि आपके यहां एक सत्यानाशी महामारी है, जी. ओ के। उसने कहा : लेकिन यह जी. ओ के है क्या बला?
ओह! उनमें से एक ने कहा : जब हम निदान नहीं कर पाते हैं हम लिख देते हैं : जी. ओके, गॉड ओनली नोज, केवल परमात्मा जानता है।
मैं नहीं जानता कि यहां इस कुर्सी पर बैठा हुआ और तुमसे बात करता हुआ यह व्यक्ति कौन है। केवल परमात्मा जानता है। जी. ओ के।
आज इतना ही।
प्रवचन 87 - उच्चतम ज्ञान: संपूर्ण अभी
योग-सूत्रः
('विभूतिपाद')
क्षणतत्कमयो: संयमाद्विवेकजं ज्ञानम्।। 53।।
वर्तमान क्षण पर संयम साधने से क्षण विलीन हो जाता है, और आने वाला क्षण परम तत्व के बोध से जन्मे ज्ञान को लेकर आता है।
जातिलक्षमदेशैरन्यतानवच्छेदात् तुल्ययोस्तत: प्रतिपत्ति:।। 54/
इससे वर्ग, चरित्र या स्थान से न पहचाने जा सकने वाली समान वस्तुओं मे विभेद की योग्यता आती