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जब कभी तुम्हारे साथ कुछ घटित हो-और यह अनेक के साथ होने वाला है, क्योंकि मैंने बहुत सी विधियां तुम्हारे लिए उपलब्ध करवा दी हैं; यदि तुम उनमें गहरे उतरते हो, तो अनेक चीजें तुम्हारे लिए उपलब्ध होने जा रही हैं-पहली बात यह कि उपलब्ध रहो; दूसरी बात यह इस पर गर्व मत करो। इसे एक तथ्य की भांति ग्रहण कर लो, इसका प्रदर्शन कभी मत करो।
और यदि यह तुम पर बलपूर्वक आए, तो शक्तियों से कहो कि तुम्हें एक छाया मात्र बना दे कि तुम्हें किसी प्रकार से पता ही न लगे कि तुम्हारे माध्यम से क्या घट रहा है। क्योंकि अगर तुम जान गए, तो पूरी संभावना है कि तुम्हारा पतन हो जाए, तुम अहंकार का संचय आरंभ कर दो-मैं यह कर सकता हूं मैं वह कर सकता हूं-और तुम निम्नतर की ओर फिसलने लगो।
आज इतना ही।
प्रवचन 86 - केवल परमात्मा जानता है
प्रश्नसार:
1-उपद्रव की स्थितियों के मध्य गहरे-और-गहरे कैसे संभव हो सकता है?
2-जब मैं आपसे निकटता अनुभव करती हूं, उन क्षणों में मैं हंसना चाहती हूं।
ऐसा क्यों होता है?
3-इन रोगों का उपचार .कैसे हो; कृपणता, बकवास रहना, अभिनेता व्यक्तिव और अभिमान। क्या इनसे निबटने के लिए ध्यान प्रर्याप्त है?
4-में यह व्यक्ति जो प्रत्येक सुबह श्वेत वस्त्रों में उस कुर्सी पर बैठता है, कौन है?