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थे, क्योंकि यह इतना उत्तप्त, इतना नया था, और वे परेशान हो गए थे, क्योंकि वे तैयार नहीं थे, उन्हें ऐसी कोई आशा नहीं थी, उन्होंने इसके लिए कोई योजना नहीं बनाई थी।
यदि उन्हें पतंजलि के बारे में पता होता तो ऐसा नहीं हुआ होता। पतंजलि ने हर बात लिख दी है; उन्होंने सारी यात्रा, अंतर्यात्रा का नक्शा बना दिया है। तो वे इस सूत्र को समझ गए होते। इस सूत्र की आवश्यकता थी।
'तब विभिन्न तलों की अधिष्ठाता, अधिभौतिक सत्ताओं के द्वारा भेजे गए निमंत्रणों के प्रति आसक्ति या उन पर गर्व से बचना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ के पुनर्जीवन की संभावना लेकर आएगा।'
लेकिन पतंजलि कहते हैं, स्मरण रखो, जब तुम उच्चतर तलों के वाहक बन जाओ, गर्व करना मत आरंभ करो, अपने आप को चुने हुए कुछ में या चयनित अनुभव करना मत आरंभ करो। ऐसा मत अनुभव करने लगो कि तुम्हें छांटा गया, चुना गया, चयनित किया गया है और तुम विशिष्ट हो। अन्यथा यही तुम्हारे पतन का कारण बन जाएगा।
एक सूफी कहानी है
एक मुर्शिद के मुर्शिद का मुर्शिद, जब कि अभी वह युवा ही था, लोगों के एक समूह में बोल रहा था। इस समूह में एक बड़ी आंखों वाला दरवेश साधारण भूरे वस्त्र पहने बैठा हुआ था। यह दरवेश लगातार वक्ता की ओर देखता रहा। उसने ऐसी जानने वाली दृष्टि से उसे देखा कि वक्ता घबड़ा गया और वहां से हट गया। वक्तव्य समाप्त होने पर यह दरवेश उसके पास गया और उससे बोला कि वह उसे दीक्षा देने के लिए भेजा गया है। ऐसा नहीं हो सकता, मेरे पिता पहले से ही मेरी दीक्षा के लिए व्यवस्था कर चुके हैं।
मैंने तुम्हें बताया कि मुझे भेजा गया है, दरवेश ने कहा।
कोई बात नहीं, मुझे अपने पिता की इच्छा को पूरा करना चाहिए, युवक के द्वारा इस प्रकार से जोर देने पर दरवेश वापस लौट गया।
उस रात उस व्यक्ति ने स्वप्न देखा कि उसके पिता उसे दरवेश दवारा दीक्षित हो जाने के लिए कह रहे हैं। प्रातःकाल में वह दरवेश उसके कमरे में यह कहते हुए आया कि उसे दीक्षा देने उसको भेजा गया है। क्या तुम एक दिन पहले की बात भी याद नहीं रख सकते? जाओ, मेरे पिता मेरी दीक्षा के लिए व्यवस्था कर रहे हैं।
दरवेश ने उसको देखा, वह अपनी आंखों में मुस्कुराया और बोला, क्या तुम अपना सपना भूल चुके हो?
इस पर वह व्यक्ति नतमस्तक हो गया और दरवेश द्वारा दीक्षित हो गया। इसके बाद कई दिनों तक यह व्यक्ति जीवन और पवित्र ग्रंथों के बारे में, हर प्रकार के प्रश्न इस दरवेश से पूछता रहा, जिनको