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अब पांच पाउंड दान पात्र में डालो और मैं तुम्हें एक और पुरुष के संसर्ग की इजाजत देता हूं।
देखो! मन अत्यंत लोभी है, अहंकार और कछ नहीं बल्कि लोभ है।
पतंजलि ने यह अध्याय लिखा, अनेक लोगों का अनुभव है कि अगर वे इसे न लिखते तो उत्तम रहता। लेकिन उनके पास बहुत वैज्ञानिक मन है। वे संभव हो सकने वाली सारी बात का नक्शा खींचना चाहते थे, और उन्होंने यह अध्याय बस लोगों को सचेत करने के लिए लिखा कि ऐसी चीजें घटती हैं। जहां तक मेरा संबंध है, मैं सोचता हूं कि उन्होंने इसे सम्मिलित करके बिलकुल उचित कार्य किया है, क्योंकि अनभिज्ञता में तुम पर लोभ के हावी होने की अधिक संभावना है। यदि तुम्हें पता है और तुम सारे मामले को समझते हो और तुम जानते हो कि अहंकार का अंतिम आक्रमण कहां होने वाला है, तो तम अधिक सावधानीपूर्वक तैयारी कर सकते हो, और जब यह होता है तो तुम असावधान होकर नहीं फंस सकोगे।
मैं पूर्णत: प्रसन्न हं कि उन्होंने 'विभूतिपाद' सिदधियों और शक्तियों के बारे में यह अध्याय लिखा है, क्योंकि भले ही तुम उनकी खोज में न हो वे अपने आप से घट सकती हैं। जितना तुम अंदर की ओर विकास करते हो बहुत सी चीजें अपने आप से घटने लगती हैं। ऐसा नहीं है कि तुम उनको खोज रहे हो या उनकी तलाश में हो-वे तो परिणाम हैं। प्रत्येक चक्र की अपनी शक्तियां होती हैं। जब तुम उनसे होकर गुजरते हो, वे तुम्हारे लिए उपलब्ध हो जाती हैं। व्यक्ति जहां जा रहा है, वहां से जान कर गुजरना और सतर्क रहना शुभ है।
'तब विभिन्न तलों की अधिष्ठाता, अधिभौतिक सत्ताओं के दवारा भेजे गए निमंत्रणों के प्रति आसक्ति या उन पर गर्व से बचना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ के पुनर्जीवन की संभावना लेकर आएगा।'
जब ये शक्तियां घटने लगती हैं तुम्हें उच्चतर सत्ताओं से, अधिभौतिक सत्ताओं से निमंत्रण मिलने लगते हैं। तुमने थियोसोफिस्टों के बारे में अवश्य सुना होगा या तुमने अवश्य पढ़ा होगा। उनका सारा कार्य इन्हीं अधिभौतिक सत्ताओं से संबंध है। वे उन्हें 'दि मास्टर्स' कहा करते थे। ऐसी अधिभौतिक सत्ताएं हैं जो मनुष्यों से संवाद करती रहती हैं। और जब कभी तम ऊपर उठते हो तम उनके लिए उपलब्ध हो जाते हो, तुम उनके साथ और लयबद्ध हो जाते हो। तुम्हें अनेक निमंत्रण, अनेक संदेश मिलते हैं।
यही है जिसको मुसलमान पैगाम, संदेश कहते हैं, और वे मोहम्मद को पैगंबर, संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति कहते हैं। वे उनको अवतार नहीं कहते, वे उन्हें ईश्वर का अवतरण नहीं कहते। वे उन्हें बुद्ध, वह व्यक्ति जो ज्ञानोपलब्ध हो गया है नहीं कहते; वे उन्हें जिन, वह जिसने जीत लिया है नहीं कहते; वे उन्हें मसीहा, क्राइस्ट भी नहीं कहते। नहीं। उनके पास इसके लिए अति परिशुद्ध, वैज्ञानिक शब्दावली है; वे उन्हें संदेशवाहक, पैगंबर कहते हैं। इसका अभिप्राय बस यही है कि वे ऊंचे उठ गए हैं