________________
तीसरा चक्र है. 'नाभि ।' वहां पर विधायक और नकारात्मक, धनात्मक विद्युत और ऋणात्मक विद्युत का मिलन होता है। उनका मिलन जीवन और मृत्यु के मिलन से भी उच्चतर है, क्योंकि विद्युतऊर्जा, प्राण, बायो–प्लाज्मा या जीव- ऊर्जा, जीवन और मृत्यु से भी गहरी है। इसका जीवन से अस्तित्व होता है, यह मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहती है जीवन और मृत्यु का अस्तित्व जीवऊर्जा के कारण ही है। जीव ऊर्जा का नाभि पर यह मिलन तुम्हें एक होने का, समग्र होने का, एकीकृत होने का उच्चतर अनुभव दे देता है।
इसके बाद है : 'हृदय ।' हृदय - चक्र पर निम्नतर और उच्चतर मिलते हैं। हृदय-चक्र पर प्रकृति और पुरुष, काम और आध्यात्म, सांसारिक और असांसारिक का या तुम इसे कह सकते हो स्वर्ग और पृथ्वी का मिलन घटता है। यह थोड़ा और उच्चतर है क्योंकि पहली बार उस पार का कुछ उदित होता है - तुम क्षितिज पर सूर्य का उदय होते देख सकते हो। अभी भी तुम्हारी जड़ें पृथ्वी में ही हैं, पर तुम्हारी शाखाएं आकाश में विस्तीर्ण हो रही हैं। तुम एक संगम बन गए हो। इसीलिए हृदय का केंद्र, जो सामान्यत: उपलब्ध, सर्वाधिक परिशुद्ध और सर्वोच्च है- प्रेम का अनुभव प्रदान करता है। प्रेम का अनुभव पृथ्वी कार स्वर्ग का सम्मिलन है, इसलिए एक ढंग से यह पार्थिव है और दूसरे ढंग से स्वर्गिक है।
यदि जीसस परमात्मा को प्रेम की भांति परिभाषित करते हैं, तो यह है इसका कारण क्योंकि मानवीय चतना में प्रेम उच्चतम झलक मालूम पड़ता है।
आमतौर से लोग कभी भी हृदय केंद्र के पार नहीं जाते हैं। हृदय केंद्र पर पहुंचना भी कठिन, करीब-करीब असंभव प्रतीत होता है। लोग काम केंद्र पर रहते हैं। अगर उन्हें योग, कराटे, अकीडो,
-
ताईची का गहरा प्रशिक्षण दिया जाए तो वे दूसरे केंद्र हारा पर पहुंच जाते हैं। यदि उन्हें श्वास, प्राण की गहरी क्रिया विधि सिखाई जाए तो वे नाभि-केंद्र पर पहुंचते हैं। और अगर उन्हें सिखाया जाए कि किस प्रकार से पृथ्वी से परे देखना है, देह के पार देखना है और कैसे इतनी गहराई से और इतनी संवेदना से देखना है कि तुम स्थूल में और अधिक सीमित न रहो, और सूक्ष्म तुम्हारे भीतर अपन पहली किरणें भेज सके, तो ही हृदय-चक्र |
भक्ति के सारे मार्ग, भक्तियोग, हृदय-केंद्र पर कार्य करते हैं तंत्र काम केंद्र से शुरू करता है। ताओ हारा केंद्र से शुरू होता है। योग नाभि-केंद्र से शुरू होता है। भक्तियोग, उपासना और प्रेम के मार्ग सूफी आदि वे हृदय केंद्र से आरंभ होते हैं।
हृदय से ऊपर है 'कंठ-चक्र । पुनः वहां एक दूसरा और ज्यादा श्रेष्ठ और अधिक सूक्ष्म एकीकरण घटता है। यह प्राप्त करने का और बांट देने का केंद्र है। जब बच्चा जन्म लेता है तो वह कंठ - केंद्र से ग्रहण करता है। पहले उसमें कंठ-चक्र के द्वारा जीवन प्रविष्ट होता है - वह हवा खींचता है, श्वास लेता है और फिर वह अपनी मां से दूध चूसता है बच्चा कंठ चक्र द्वारा कार्य करता है, लेकिन यह