________________
यह मेरी नहीं है। इसलिए तुम्हारे शरीर के ही दूसरे किसी भाग से, जैसे जांघ की त्वचा निकाल कर प्रत्यारोपण करना पड़ता है, तुम्हारी अपनी त्वचा का प्रत्यारोपण करना पड़ता है। अन्यथा शरीर उसे अस्वीकार कर देगा, तुम्हारा शरीर इसे स्वीकार नहीं करेगा - यह मेरी नहीं है। शरीर के पास कोई मैं नहीं है, लेकिन इसके पास हूं-पन है।
अगर तुम्हें रक्त की आवश्यकता हो तो हर किसी का रक्त काम न पड़ेगा। शरीर हर प्रकार के रक्त को स्वीकार नहीं करेगा, केवल एक विशेष प्रकार का रक्त ही चाहिए। उसके पास इसका अपना हूं-पन है। यही स्वीकार किया जाएगा, कोई अन्य रक्त अस्वीकृत कर दिया जाएगा। शरीर के पास अपने अस्तित्व की एक निजी अनुभूति है। बहुत अचेतन, बहुत सूक्ष्म और शुद्ध, लेकिन यह वहां होती है।
तुम्हारी आंखें तुम्हारी हैं, तुम्हारे अंगूठे की छाप की भांति तुम्हारी हर चीज तुम्हारी है। अब शरीर विज्ञानी कहते हैं कि प्रत्येक का हृदय अलग है, अलग आकार का है। शरीर क्रिया विज्ञान की पुस्तकों में जो चित्र तुम्हें मिलेगा वह वास्तविक चित्र नहीं है, यह बस औसत है, यह कल्पना द्वारा बनाया गया है। अन्यथा प्रत्येक व्यक्ति का हृदय अलग आकार का है। यहां तक कि हर व्यक्ति का गुर्दा भी अलग आकार का है। इन सभी अंगों पर उन व्यक्तियों के हस्ताक्षर होते हैं, हर व्यक्ति इतना अनूठा है । यही है हूं - पन ।
तुम यहां दुबारा फिर कभी नहीं होगे, तुम यहां पहले कभी नहीं थे, इसलिए सावधानी पूर्वक, सजग होकर और प्रसन्नता पूर्वक जीयो अपने अस्तित्व की गरिमा के बारे में सोचो जरा सोचो तुम कितने श्रेष्ठ और अनूठे हो। परमात्मा ने तुम्हें बहुत कुछ दिया है। कभी अनुकरण मत करो क्योंकि वह एक धोखा होगा। स्वयं जैसे बनो। इसी को अपना धर्म बन जाने दो। शेष सब कुछ राजनीति है। हिंदू मत बनो, मुसलमान मत बनो, ईसाई मत बनो धार्मिक बनो, लेकिन केवल एक ही धर्म है, और वह है स्वयं ही प्रामाणिक रूप से स्वयं ही हो जाना ।
'उनकी बोध की शक्ति, वास्तविक स्वरूप, अस्मिता, सर्व व्यापकता और क्रियाकलापों पर संयम साधने से ज्ञानेंद्रियों पर स्वामित्व उपलब्ध होता है।'
और अगर इन चीजों पर ध्यान लगाओ तो तुम मालिक हो जाओगे। ध्यान स्वामित्व लाता है, ध्यान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है जो स्वामित्व लाता हो। अगर तुम अपनी आख पर ध्यान करो तो पहले तुम गुलाब का फूल देखोगे, धीरे- धीरे तुम उस आख को देखने में समर्थ हो जाओगे जो देख रही है तब तुम आख के स्वामी हो गए हो एक बार तुमने देखने वाली आख को देख लिया, तुम स्वामी हो गए। अब तुम इसकी सारी ऊर्जाओं का उपयोग कर सकते हो, और वे सर्वव्यापक हैं। तुम्हारी आंखें उतनी सीमाबद्ध नहीं है जैसा कि उन्हें तुम समझते हो। वे ऐसी और भी बहुत सी चीजें देख सकती हैं जिन्हें तुमने नहीं देखा है वे ऐसे कई रहस्यों को अनावृत कर सकती हैं जिनका