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और मृत्यु के इस भय के कारण, वृद्धावस्था भी भयप्रद होती है क्योंकि यह मृत्यु का पहला कदम है। अन्यथा वृद्धावस्था भी सुंदर है। यह तुम्हारे अस्तित्व की संपूर्णता, विकास की परिपक्यता है। यदि तुम क्षण-क्षण उन सभी चुनौतियों को जो जीवन तुम्हें देता है, जीते हो, और तुम उन सभी अवसरों का जिन्हें जीवन ने तुम्हारे लिए खोला है उपयोग कर लेते हो, और यदि तुम उस अज्ञात में, जिसमें जीवन तुम्हें पुकारता और निमंत्रित करता है, उतरने का साहस करते हो, तो वृद्धावस्था एक परिपक्वता है। वरना वृदधावस्था एक रोग है।
दर्भाग्य से अनेक लोग बस उम्र ही बढ़ाते हैं, वे उससे संबंधित परिपक्वता के बिना के हो जाते हैं। तब वृद्धावस्था एक बोझ होती है। तुम शरीर से उमरदार हो गए हो लेकिन तुम्हारी चेतना किशोरावस्था में रहती है। तुम शरीर से तो के हो गए लेकिन अपने आंतरिक जीवन में तुम परिपक्व नहीं हुए हो। आंतरिक प्रकाश का अभाव है, और प्रतिदिन मौत निकट आ रही है; निःसंदेह तुम कांपोगे और तुम भयभीत होगे और तुम्हारे भीतर एक महत संताप उठने लगेगा।
जिन्होंने जीवन को ढंग से जीया है, वे वृद्धावस्था को गहन स्वागत भाव से स्वीकार करते हैं, क्योंकि वृद्धावस्था मात्र इतना बताती है कि अब वे खिलने जा रहे हैं, कि वे अब फलवान होने जा रहे हैं, कि जो भी उन्होंने उपलब्ध किया है अब वे उसे बांटने में समर्थ हो जाएंगे।
ना दटते -
साधारणत: वृद्धावस्था कुरूप होती है, क्योंकि यह बस एक रोग है। तुम्हारी दैहिक संरचना विकसित
, वरन और-और रुग्ण, कमजोर और अशक्त हो गई होती है। वरना तो वृद्धावस्था जीवन का सर्वाधिक सुंदर समय है। बचपन की सारी मूर्खता जा चुकी है, यौवन की सारी वासना और उत्ताप जा चुका है.. .एक शांति उदित होती है, मौन, ध्यान, समाधि।
वृद्धावस्था आत्यंतिक रूप से सुंदर है, और इसे ऐसा होना ही चाहिए, क्योंकि सारा जीवन इसी ओर बढता है। इसको तो शिखर होना चाहिए। शिखर आरंभ में ही कैसे हो सकता है? शिखर मध्य में कैसे हो सकता है? किंतु अगर तुम यह सोचते हो कि तुम्हारा बचपन शिखर था, जैसा कि बहुत लोग सोचते हैं, तो निःसंदेह तुम्हारा सारा जीवन एक संताप हो जाएगा, क्योंकि अपना शिखर तो तुम पा चुके होअब तो सब कुछ एक पतन, अधोगमन है। अगर तुम सोचते हो कि युवावस्था शिखर है, जैसा बहुत से लोग सोचते हैं, तो निःसंदेह पैंतीस वर्ष के बाद तुम दुखी, उदास हो जाओगे, क्योंकि प्रतिदिन तुम खोओगे, खो रहे होओगे, खोते जाओगे, और पा कुछ भी नहीं रहे होओगे। ऊर्जा खो जाएगी, तुम कमजोर हो जाओगे, तुम्हारे भीतर बीमारियां घुस आएंगी और मृत्यु द्वार पर दस्तक देने लगेगी। घर खो जाएगा और अस्पताल दिखने लगेगा। तुम प्रसन्न कैसे हो सकते हो? नहीं, लेकिन पूरब में हमने कभी नहीं माना कि बचपन या जवानी शिखर है। शिखर तो ठीक अंत के लिए प्रतीक्षा करता है।