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अपने अस्तित्व में झांकने के लिए स्वयं को अवकाश दो, तब अचानक तुम देखोगे कि वस्तुओं के साथ कोई आसक्ति नहीं है। यह हो कैसे सकता है? यह असंगत है।
मैंने एक बहुत सुंदर कहानी, एक सूफी कहानी सुनी है-स्वर्णिम
द्वार।
दो लोगों ने प्रार्थना की और उनके रास्ते अलग हो गए। एक ने संपत्ति और शक्ति एकत्रित की, लोगों का कहना था कि वह प्रसिद्ध तो था, लेकिन उसके मन में शांति नहीं थी। दूसरे ने लोगों के दिलों को, उनके अपने छिपे हुए भयों के अंधकार में दीयों की भांति जगमगाते हुए देखा। उसे भी समृद्धि और शक्ति मिली और उसकी संपदा, उसकी शक्ति, प्रेम थी। जब सरलता से दयालतापूर्वक, कोमलता से वह अपने सहयात्रियों को अपने प्रेम की सारी संपदा और क्षमता के साथ स्पर्श करता था तो अंतस का प्रकाश सुस्पष्ट हो जाता और साहस और शांति से दमकने लगता।
एक दिन दोनों ही लोग उस 'स्वर्णिम द्वार' के सम्मुख खड़े थे, जिससे होकर प्रत्येक व्यक्ति को उस पार के विराट जीवन हेतु गुजरना पड़ता था। देवदूत ने प्रत्येक आत्मा से पूछा : तुम अपने साथ क्या लेकर आए हो? तुम्हारे पास देने के लिए क्या है?.....
परमात्मा सदैव पूछता है. तुम अपने साथ क्या लेकर आए हो? तुम्हारे पास देने के लिए क्या है? परमात्मा तुम्हें दिए चला जाता है, लेकिन अंततः अंतिम दिन, इसके पूर्व कि तुम उसके भवन में प्रविष्ट हो वह पूछता है, अब तुम मेरे लिए क्या लेकर आए हो? मेरे लिए तुम्हारी क्या भेंट है? .....उस व्यक्ति ने जो प्रसिद्ध था, अपनी उपलब्धियों को दुबारा गिना। क्योंकि न जाने कितने लोगों को वह जानता था, जाने कितने स्थानों पर वह गया था, जाने कितने काम उसने किए थे-और न जाने कितनी वस्तुएं उसने एकत्रित कर रखी थीं।
लेकिन देवदूत ने उत्तर दिया : यह सब स्वीकार्य नहीं है, ये कार्य जो तुमने किए हैं तुमने अपने लिए किए हैं, मुझे इनमें कोई प्रेम नहीं दिखाई पड़ता।...
यदि अहंकार है, तो प्रेम नहीं हो सकता। इसे याद रखो। बाद में मैं इस पर चर्चा करूंगा, क्योंकि यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीजों में से ही एक है; यदि अहंकार है, तो प्रेम नहीं हो सकता है।
........और वह प्रसिद्ध व्यक्ति स्वर्णिम-दवार के बाहर डूब गया और रोया...
पहली बार वह अपनी सारी कोशिशों की व्यर्थता को देख पाया। यह एक सपने जैसी थी जो बीत गया और उसके हाथ खाली रह गए। यदि तुम वस्तुओं से बहुत ज्यादा भरे हुए हो तो किसी न किसी दिन तुम्हें दिखेगा कि तुम्हारे हाथ खाली हैं। यह स्वप्न ही था जिसे तुम अपने हाथों में उठाए हुए थे; वे सदा से खाली थे। तुम तो बस स्वप्न ही देख रहे थे कि उनमें कुछ है। क्योंकि तुम खालीपन से