________________
और परम अनासक्ति तभी आती है जब तुम्हें कुछ चमत्कार, सिद्धियां, शक्तियां उपलब्ध हो चुकी हों-जब तुम कुछ कर सको-कुछ ऐसा जो चमत्कारी हो, कुछ ऐसा जो अविश्वसनीय हो। यदि तुम उनसे आसक्त हो गए, तो कभी न कभी तुम पुन: संसार में वापस आ जाओगे। सावधान हो जाओ। अहंकार का, तुम पर यह अंतिम आक्रमण है; इसके चंगुल में मत फंसना। तुम पर अहंकार अपना अंतिम जाल फेंक रहा है।
'इन शक्तियों से भी अनासक्त होने से, बंधन का बीज नष्ट हो जाता है।...'
बंधन का बीज है-आसक्ति! और मुक्ति का बीज है प्रेम। और वे किस कदर एक से दिखाई पड़ते हैं। वे नितांत विपरीत हैं, आसक्ति है प्रेम-विहीनता और प्रेम सदा अनासक्त है। अंतर कहां है?
तुम किसी स्त्री या पुरुष से प्रेम करते हो और तुम आसक्ति अनुभव करते हो। तुम्हें आसक्ति क्यों अनुभव होती है? आसक्ति का बस यही अर्थ है-तुम चाहोगे कि यह स्त्री कल भी तुम्हारे साथ हो। कल और उसके बाद आने वाले अगले दिन भी तुम इस स्त्री को अपने कब्जे में रखना चाहोगे। यह बस यही प्रदर्शित करता है कि तुम आज प्रेम कर पाने समर्थ नहीं हो सके, अन्यथा कल की अवश्यकता ही न होती। कल की चिंता कौन करता है? कल के बारे में कौन जानता है? कल कभी नहीं आता। यह उसी मन में आता है जो आज जी नहीं रहा है। तुमने आज इस स्त्री को प्रेम नहीं किया इसलिए तुम कल के आने की प्रतीक्षा कर रहे हो ताकि तुम प्रेम कर सको। तुम्हारा प्रेम अपूर्ण, अधूरा है। उस अधूरे प्रेम के लिए आसक्ति उपजती है। तब यह स्वाभाविक है, तर्क युक्त है। तुम कुछ चित्रित कर रहे हो, और चित्र अधूरा है, तुम चाहोगे कि चित्र पूरा करने के लिए कल भी कैनवास तुम्हारे पास रहे।
जीवन में एक बहुत गहरा नियम है; यह हर बात को पूर्ण करना चाहता है। कली फूल बनना चाहती है; बीज अंकुर बनना चाहता है। हर चीज पूर्णता की ओर जा रही है, इसलिए जो कुछ भी तुम अपूर्ण छोड़ देते हो वह मन में अभिलाषा बन जाता है और कहता है : 'इस स्त्री पर कब्जा कर लो। तुमने अभी प्रेम किया ही कहां है; अभी तुम उसके अस्तित्व के इस छोर से उस छोर तक गए ही नहीं, अभी भी उसमें बहुत कुछ अनजाना बचा हुआ है, अभी भी उसमे काफी संभावनाएं हैं जो साकार होना शेष हैं अस्तित्व के कई गीत हैं, और नर्तन करने को कई नृत्य हैं।' -आसक्ति उठ खड़ी होती है। कल की जरूरत है, कल के बाद परसों की जरूरत है, भविष्य की आवश्यकता है। और यदि तुम वर्तमान में जीने के लिए जरा भी समर्थ नहीं हो, तो भविष्य के जीवन की भी आवश्यकता है, और लोग एक-दूसरे से वादे किए चले जाते हैं, 'हम अगले जन्म में भी पति-पत्नी बने रहेंगे।' यह तो बस सही प्रदर्शित करता है कि लोग जीने में नितांत असमर्थ हो गए हैं। वरना आज का दिन स्वयं में पर्याप्त है।