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भयभीत थे, तुमने किसी वस्तु की कल्पना कर ली थी, तुमने विश्वास किया था। तुमने कभी गहराई से नहीं देखा कि वास्तव में वहां कुछ है भी या नहीं।
... और वह प्रसिद्ध व्यक्ति स्वर्णिम-द्वार के बाहर डूब गया और रोया। वह दयालु हो पाने के लिए समय ही नहीं निकाल पाया था...
प्रेम कर सकने के लिए अति व्यस्त रहा था, अरपने आप में बेहद उलझा रहा था, व्यर्थ की चीजों की उसे बहुत चिंता रही थी, और सार की चीजों पर विचार नहीं कर सका था।
......तब देवदूत ने दूसरे की आत्मा से पूछा और तुम क्या लेकर आए हो? तुम्हारे पास देने के लिए क्या है?
और उसने उत्तर देते हुए कहा. कोई मेरा नाम नहीं जानता। लोग मुझे घुमक्कड़, स्वप्नदर्शी कहा करते थे। मेरे दिल में थोड़ा सा प्रकाश था, और बस वही मेरे पास था, मैंने उसे लोगों की आत्माओं के साथ
बांटा है...
पागलों के इस संसार में असली लोग स्वप्नदर्शी जैसे लगते हैं। संतों को सदैव घुमक्कड़, स्वप्नदर्शी, कवि, कल्पना-लोक जीवी, कहीं और रमने वाले, जलज भक्षी, नाभि दृष्टा के रूप में जाना गया है।
असली लोगों को इसी प्रकार के नाम दिए जाते हैं, क्योंकि यह संसार कागजी लोगों का है। वे असली नहीं हैं। कागजी लोग जब भी वे किसी असली आदमी के संपर्क में आते हैं, उसे स्वप्नदर्शी, कवि कहते हैं। उसकी निंदा करने का उनका यह उपाय है, और अपने आप को बचाने की भी यही तरकीब है।
... और उसने उत्तर देते हुए कहा. मेरा नाम कोई नहीं जानता, लोग मुझे घुमक्कड़, स्वप्नदर्शी कहा करते थे। मेरे हृदय में थोड़ी सी रोशनी थी और कुछ भी नही, बस दिल में थोड़ी सी रोशनी-और जो मेरे पास थी उसे मैंने लोगों की आत्माओं के साथ बांटा।
फिर देवदूत ने कहा : हे भाग्यवान! तुम्हारे पास सबसे अच्छी भेंट है। यही है प्रेम। सदा और सदैव और-और बांटने के लिए पर्याप्त और उपलब्ध रहता है। प्रविष्ट हो जाओ...'
प्रेम का यही सौंदर्य है; जितना अधिक तुम देते हो उतना ही अधिक यह तुम्हारे पास होता है। इसे अपने जीवन की कसौटी बन जाने दो। उसका संचय मत करो जो देने से खोता हो, केवल उसी का संचय करो जो देने से संचित होता है। केवल उसी को एकत्र करो जो बांटने से बढ़ता और विकसित होता है। वही मूल्यवान है जिसे तुम बांट सको और इसके बांटने मात्र से ही यह बढ़ता है और तुम्हारे पास पहले से भी ज्यादा हो जाता है।
'सदा और सदैव और-और बांटने के लिए पर्याप्त और उपलब्ध रहता है। प्रविष्ट हो जाओ।'