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जमा कर खड़े हो जाओ, और बस पृथ्वी के साथ अपने पैरों का एक संवाद का अनुभव करो। अचानक तुम्हें पृथ्वी के साथ अपनी जड़ों का गहन जुड़ाव का गहरा और ठोस अनुभव होगा। तुम देखोगे, पृथ्वी संवाद करती है; तुम देखोगे, तुम्हारे पैर संवाद करते हैं, पृथ्वी और तुम्हारे मध्य एक वार्तालाप हो रहा
यह जुड़ाव खो चुका है। लोगों की जड़ें उखड़ चुकी हैं, वे अब जुड़े हुए नहीं रहे। और तब वे जी नहीं पाते। क्योंकि जीवन सारे शरीर से संबद्ध है केवल सिर से नहीं।
पश्चिम में कुछ वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में वे कुछ प्रयोग कर रहे हैं जहां कि कुछ सिरों को जीवित रखा गया है। एक बंदर का सिर उसके शरीर से काट लिया गया, उसे कुछ ऐसे यांत्रिक उपकरणों से जोड़ा गया जो शरीर की भांति कार्य करते हैं। सिर सोचता रहता है, स्वप्न देखता रहता है। सिर इससे प्रभावित नहीं हुआ, जरा भी नहीं।
जो घटना घटी है, वह यही तो है। पश्चिम की कुछ प्रयोगशालाओं में ही नहीं, हरेक आदमी के साथ यही घटा है। तुम्हारा सारा शरीर एक यांत्रिक चीज बन कर रह गया है, केवल तुम्हारा सिर ही जीवित है। यही कारण है कि सिर में इतनी ज्यादा आपाधापी, इतने सारे विचार, इतना अधिक सोच-विचार है। लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं, इसको कैसे रोकें? किस भांति इसे रोकें यह समस्या नहीं है। समस्या है कि इसको सारी देह में किस प्रकार प्रसारित किया जाए। निःसंदेह यह बहुत अधिक भरा है क्योंकि सारी ऊर्जा वहीं है और यह इतनी अधिक ऊर्जा वहन करने में समर्थ नहीं, इसीलिए तुम पगला जाते हो, तुम बहक जाते हो।
पागलपन हमारी संस्कृति द्वारा उत्पन्न एक रोग है; यह सांस्कृतिक बीमारी है.। पृथ्वी पर कुछ ऐसी आदिम संस्कृतियां रही हैं जहां पागल आदमी हुए ही नहीं, जहां विक्षिप्तता कभी थी ही नहीं। और अब भी तुम इसे देख सकते हो, उन समाजों में जो आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध नहीं है, शैक्षिक स्तर जहां सार्वभौमिक शिक्षा की आपदा अभी तक नहीं आई है, जहां लोग अब भी मात्र अपने सिरों में ही नहीं है बल्कि अन्य अंगों में भी हैं-भले ही आशिक रूप में हों, लेकिन फिर भी कहीं ऊर्जा का कुंड होता है, पैरों में हो, पेट में ऊर्जा का कुंड हो-भले ही वे उसके संपर्क में नहीं हैं, असंबद्ध कुंड हैं, लेकिन फिर भी ऊर्जा कहीं न कहीं फैली हुई है-सब ओर फैली हुई है- भलीभांति वितरित है, तो पागलपन कभी-कभार ही घटता है। जितना अधिक कोई समाज सिर-उन्मुख हो जाता है उतना ही पागलपन।
यह इस प्रकार है कि एक सौ दस वोल्ट के तार से तुम एक हजार वोल्ट की बिजली प्रवाहित करने का जबरन प्रयास करो-तो हर चीज छिन्न-भिन्न हो जाएगी। सिर को भली प्रकार से कार्य करने कि लिए ऊर्जा की अल्प मात्रा की आवश्यकता है। सिर में अत्यधिक ऊर्जा, फिर वह निरंतर कार्यरत रहता है, इसे पता नहीं कब रुकना है, क्योंकि ऊर्जा को विसर्जित कैसे किया जाए? यह सोचता है,