________________
किसी दूसरे स्थान पर अध्यारोपण करती हुई, छिपती हुई, पलायन करती हुई मिलती है। तुम एक अव्यवस्था बन जाते हो। और यही तो है पागलपन।
एक बार ऐसा हुआ:
एक पादरी मर गया और उसने स्वयं को स्वर्ग के द्वार पर खड़ा पाया। जैसे ही उसे भीतर लेने के लिए द्वार धीरे-धीरे खोला गया उसे एक अदभुत धूमधाम मालूम पड़ी, और फिर सारे सामान्य और विशिष्ट देवदूत, थलचर और नभचर स्वर्गदूत, सिंहासनारूढ़ और अधिष्ठाता, संत और धर्म के बलिदानी, ये सभी क्रमबद्ध रूप से अपने पदानुसार उसका सम्मान करने को अनुशासित ढंग से आए।
बहत अच्छा, मैं तो गदगद हो गया, पादरी ने सेंट पीटर से पूछा, क्या स्वर्ग में आने वाले हर पादरी का आप ऐसा ही स्वागत-सत्कार करते हैं?
ओह नहीं, सेंट पीटर ने कहा, ऐसा इसलिए हुआ कि तुम यहां प्रवेश करने वाले पहले पादरी हो। और मैं तो इस पर भी शक करता हूं। पादरी स्वर्ग में प्रवेश नहीं पा सकते क्योंकि पादरी समग्र नहीं हो सकते। तो फिर वे पवित्र कैसे हो सकते हैं? असंभव।
और तुम मुझसे पूछते हो : 'मैं इने समस्याओं की बदलियों से घिरा रहता हूं इसलिए जैसे मुझे आपको सुनना चाहिए उस प्रकार से नहीं सुन पाता हूं। कृपया मुझे मार्ग दिखाएं।'
तुम अभी तक मार्ग-निर्देशकों से उकताए नहीं। वे ही तुम्हारी समस्या हैं। और तुम अभी, तक 'चाहिए' से ऊबे नहीं हो। यही तुम्हारी पीड़ा है, सारा संताप है। सभी 'चाहिए' छोड़ दो, सारे मार्गनिर्देशकों को हटा दो। यही एक मात्र मार्ग-निर्देशन मैं तुम्हें दे सकता हूं। पूर्णत: अकेले हो जाओ, उगाऐर अपने भीतर की आवाज को सुनो। जीवन पर श्रद्धा रखो किसी और पर 'नहीं। और जीवन सुंदर और आंतरिक रूप से मूल्यवान है। और यदि तुम जीवन के विरोध में हर किसी को सुनते हो, तो तुम भटक जाओगे।
इसलिए मैं उसे ही सच्चा सदगुरु कहता हूं जो तुम्हें तुम्हारी भीतरी आवाज वापस देने में सहायक हो। वह तुम्हें अपनी आवाज नहीं देता है। तुम्हें तुम्हारी स्वयं की खोई हुई आवाज पुन: पा लेने में सहायता देता है। वह तुम्हें निर्देशित भी नहीं करता, वास्तव में तो वह तुमसे सारे मार्ग-निर्देशक छीन लेता है ताकि तुम स्वयं अपने मार्ग-निर्देशक बन जाओ और तुम अपने जीवन को अपने हाथों में ले सको और तुम उत्तरदायी बन सको।
बार-बार किसी से पूछना, 'मुझे क्या करना चाहिए?' यही अनुत्तरदायित्व है।