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प्रवचन 85 - अहंकार का अंतिम आक्रमण
योग-सूत्र:
(विभुतिपाद)
तवैराग्यादैपि दोषबीणखूये कैवस्युम्।। 51।।
इन शक्तियों से भी अनासक्त होने से, बंधन का बीज नष्ट हो जाता है। तब आता है कैवल्य, मोक्ष।
स्थान्यपनिमन्त्रणे सङ्गस्मयाकरणं पुनरनिष्टप्रैसक्गात्।। 52।।
तब विभिन्न तलों की अधिष्ठाता, अधिभौतिक सत्ताओं के द्वारा भेजे गए निमंत्रणों के प्रति आसक्ति या उन पर गर्व से बचना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ के पुनर्जीवन की संभावना लेकर आएगा।
तदवैराग्यादपि दोषबीजक्षये कैवल्यम्।
'इन शक्तियों से भी अनासक्त होने से, बंधन का बीज नष्ट हो जाता है। तब आता है कैवल्य,
मोक्ष।
सार में ही अनासक्त होना काफी कठिन है लेकिन जब आध्यात्मिक संसार अपने दवार
खोलता है तो अनासक्त होना और भी अधिक कठिन है। दूसरी स्थिति में कठिनाई लाखों गुनी है, क्योंकि सांसारिक शक्तियां वास्तविक शक्तियां नहीं हैं। वे नपुंसक हैं और वे तुम्हें कभी संतुष्ट नहीं करतीं, वे तुम्हें कभी परितृप्त नहीं करती। वस्तुत: संसार में की गई प्रत्येक नई उपलब्धि और अधिक इच्छाएं उत्पन्न करती है। तुम्हें संतुष्ट करने के स्थान पर यह तुम्हारे मन को नये अभियानों पर भेजती है, इसलिए संसार में तुम कोई भी शक्ति उपलब्ध कर लो, तुम इसे नई इच्छाएं निर्मित करने में ही प्रयोग करते हो।